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CHRISTRI501501505 विद्यानुशासन HS615121STONSIDISTRIES
मंत्री प्रातःकाल के समय तीन प्रकार की शुद्धि तथा सकली करण क्रिया करके स्नान की आवश्यक वस्तुओं सहित स्नान मंडप में प्रवेश करे।
स्थित्या मंदर पीठाग्रे पश्चिमाभिमुरवो भवेत्. सिद्धभक्तिं तत: कुयादिद्ध श्रद्धा विशुद्ध धी:
॥४१॥ फिर वह मंदर की पीठ के आगे पश्चिम की तरफ मुँह किए हुए खड़ा होकर पूर्ण श्रद्धा से पवित्र बुद्धि वाला बनकर सिद्ध भगवान की भक्ति करे।
अभिषेकक्रियोक्तेन विधाने नैव देशिकः, भूमि सल्टौ धमादीनि कुर्यात् त्रीणि विशेषतः
॥४२॥ फिर अभिषेक क्रिया के विधान से भूमि संशोधन आदि तीनों क्रियाओं को विशेष रुप से करे।
तस्य मंदर पीठस्य मूद्धि सं स्थापयेत् ततः, श्री शांतिनाथमहतं सर्व शांति विधाविधायक
॥४३॥ फिर उस मंदर को पीठ पर सब शांति को करनेवाले अर्हत भगवान श्री शांतिनाथजी की स्थापना करे।
तस्याग्ने स्थापटोत् वाणी यक्ष दक्षिण भागतः, टाक्षी च वामतो देव्यं सरसीरुह विष्टरे
॥४४॥ उसके आगे वाणी (शास्त्र) दाहिनी तरफ यक्ष को और बाँई तरफ कमल के आसन पर यक्षी की स्थापना करे।
नदी कूप तटाकादि शुद्ध देश मुवांमसा, नालिकेरोद केन सुरसेनाम रसेन वा
॥४५॥ नदी, कूएँ, तालाब आदि शुद्ध स्थान का जल नारियल का जल, गन्ने का रस अथवा आम का रस।
सर्पिषा पयसा दनाक्षीर वृक्ष त्वगंबुना, गंधाकष्टा लिना गंध सलिलेन च पूरितैः
॥४६॥ घृत दूध, दही, क्षीर वृक्ष के जल सुगंध से खिंचे हुए भौरे याले सुगंधित जल से भरे हुए।
अंतन्निहित रत्न गंध चूर्ण प्रसूनकै:
मुरवभाग विनिक्षिप्त बीजपूरफलादिभिः CSIRIDIOISTRISTOTRISTRIS९१४ PISTRIESERSIRIDIOIRTERSN
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