Book Title: Vidyanushasan
Author(s): Matisagar
Publisher: Digambar Jain Divyadhwani Prakashan

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Page 1095
________________ CHRISTI50158505 विद्यानुशासन 985105505IODOSDESI शिरिवनःशकता लिप्तैः ताल शिला भोजनस्य, सप्ताहं हस्तु तले निहितं यत द्रव्यं द्रश्यते न जनैः ॥६०|| मोर को एक सप्ताह तक हड़ताल और मेनसिल खिला कर उसकी विष्टा का हाथों पर लेप करने से हाथ में रखे हुए द्रव्य को लोग नहीं देख सकते हैं। ॐ नमो भगवते रुद्राय मनोवायु वेग गरुड़ वेगिनी च ठः ठः जप्तं तैलं त्रिशत् योजन गति हेतु रंध्नगं सिद्धां वायस जंघा शिफया तुंब्याः पुष्प स्य च स्वरसेन ॥ ६१॥ कोष्ट्र नेत्ररजो ताक्ष: पश्येद्भूतगणं निशि, सिद्धं द्रव्यं ददात्यऽस्मै गुलिका पादुकादिसं ॥६२॥ तेल को इस मंत्र से अभिमंत्रित करके (अध्रि) पांवों पर लगाने से पुरुष तीस योजन तक बिना थके जा सकता है। काक जंधा (वायस जंघा) की (शिफा) जड़ और तुंबी के फूलों का स्वरस से सिद्ध किए हुए (क्रोष्ट्र) गीदड़ के नेत्र के चूर्ण को आंखों में लगाने से रात में भूतगण दिखाई देकर उसको सिद्ध द्रव्य गुटका तथा खड़ाउ आदि दिखाई देते हैं। सप्ताहं पुष्पिता योन्यां सौवीरांजन माहितं, वन्हि मध्ये हुतं तत्र दरुर्यित् पुरुषा कति ॥६३॥ ऋतु धाली स्त्री की योनि में एक सप्ताह तक सौ वीरांजन (काला सुरमा) को रखकर अगर उसे अमि में जलाए तो पुरुष की आकृति दिखाई दे। - - - दहने सज्योत्स्नाया क्षणदायां हपुष बीज होमेन, द्रश्यतं शूलधारा स्तन हरा: पीत तनु वर्ण: ॥ ६४॥ (क्षणदा) रात्रि में (ज्योतिण) चांदनी रात में (दहन) अग्नि में (हपुष बीज) हाड बोर के होम करने से शरीर के पीले वर्ण वाले त्रिशुल धारी शिवजी दिखाई देते हैं। अभ्रक पटले लिरिवतं यद्रूपं नीलकंठ पित्तेन, तन्नयस्तं तत्पुरतोऽग्ने स्तस्य ज्वाला सु लक्ष्येत् ॥६५॥ यदि नील कंठ के पित्त से अभ्रक के पटल पर जसि का रुप लिखकर अग्नि के सामने रखा जाए तो वह अग्नि की ज्वाला में दिखाई देता है | SSSSRI5251015035255R०८९PISODISTD351055105570150155

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