Book Title: Vidyanushasan
Author(s): Matisagar
Publisher: Digambar Jain Divyadhwani Prakashan

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Page 1105
________________ PPSPSP593 विद्यानुशासन 9552959529595 न्यस्तेन चर्मणों मध्ये रामठेन विमुंचति, शाल्मली सकलान्या श्रु फलानि कुसुमानि च ॥ १२० ॥ (रामठ) हींग को संभल वृक्ष की (च) (छाल) में रखने से सेंभल के सब फल और फूल झड़ जाते हैं। पुष्प युते भूत दिने श्रन्यां योन्यांरतेऽर्पिता भुवि पतिता, आंत गुलिका मुद्रा तटो: फलाद्यान्निपातयेत् ॥ १२१ ॥ पुष्य नक्षत्र वाले भूतदिन (इतवार कृष्ण चतुर्दशी) को शून्य (नली) द्रव्य को लाकर रति वाली योनि में रखें। फिर पृथ्वी पर गिरने पर उंगली में अंगूठी पहनकर वृक्षों के फल फूलों को पृथ्वी में गिरा देता है। व्योषवर्य परां कल्क लिप्तयां मांघ्रि ताड़ितः, तरु मुंचति पुष्पाणि सकलानि फलानि च ॥ १२२ ॥ व्योष (सोंठ मिरच पीपल) वर्य (श्रेष्ठ) अपरा धूप के कल्क से लिए हुए हाथों द्वारा वृक्षों को छूने से वृक्षों के सम्पूर्ण फल पुष्पादि को गिरा देता है मोर के पिते हो जाते है । भुष्टता क्षणं निरुद्वानि शिरिव पित विलिप्तया, क्षिप्तानि निंब पत्राणि भवंति भुवि वृश्चिकाः से लेप की हुई मुट्ठी में जरा देर रोककर पृथ्वी में फेंके हुए ॥ १२३ ॥ नीम के पत्ते बिच्छू अंकोल तेल लिप्ते करतल मुष्टौक्षणं निरुद्धाणि, पत्राणि भूत केश्याः स्युः क्षोण्यां वृश्चिका क्षिप्ताः ॥ १२४ ॥ अंकोल के तेल से लेप की हुई मुट्ठी मैं जरा देर तक रोककर पृथ्वी पर डाले हुए भूत केशी () के पत्ते बिच्छू बन जाते हैं यज्जग्धा प्रवलाकिंका त्रिदिवसंत्यक्ताशना कौमुकं रक्ता कुसुमं हर्हेति विधिवते तेनप्रलिप्येक्षु ॥ मुष्टौ तस्य द्दढ़ें निरुद्भूयन चिरः क्षिप्रानि तारा पथे जायंते च पत्रच्छदा वरतिका श्चिचंचा फलानि स्फुटं ॥ १२५ ॥ वलाका (सारस) के द्वारा जो दिन दिन से भूखा हो उससे खाकर छोड़े हुए कौमुक () को जलाकर उसमें विधिवत् लाल रंग वाले फुल और इक्षुर (लाल मखाने) से लेप की हुई मुट्टी में मजबूती से बांधकर आकाश में फैले हुए इमली के फल और पत्ते बरटिका बन जाते हैं। 9596969599१०९९P969695969595

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