Book Title: Vidyanushasan
Author(s): Matisagar
Publisher: Digambar Jain Divyadhwani Prakashan

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Page 1102
________________ CASIOSISTRISTOISTERSC विधानुशासन PADOSTEDISSISION एक दिन के भूलो कछुए से खाया हुआ नव ध्रुव ताल से लेप की हुई लाठी नाचने की शोभा को करती है। ताले भावित मौष्ट्र कफ मूत्र कपालधर्म सलिले युत, तल्लिप्त/प्रहस्तं मुष्टि चित्राण्या मोक्ष मा वषयात् ॥१०१॥ ऊंट के कफ मूत्र और सिर के पसीने के जलों से भावना दिये हुए हरताल से लिए हुए हाय की मुट्ठी खोलने तक चित्रों को तोड़ डालती है। शुनी जसायुणा पिच्छ पूपितं वेष्टितं च यत् , सटोन तत भ्रमं स्वित्रं हरेन्मोक्षोपसव्यतः ॥१०२॥ कुत्ती की जरायु (गर्भ की झिल्ली) और पिच्छ (मोचरस) से धूप दी हुई मुट्ठी दाहिने हाथ से घुमाती है और बांये से उसको नष्ट करती है. मार्जारजानुधूपेन स्पृष्टं चित्रं न द्रश्यते, तदैवदेव धूपेन धूपितं याति चित्रता ॥१०३॥ चित्र सोसपदा सूप बार जैवनियेत, सं स्पृष्ट क्षौद्र धूपैन न द्रश्यते यथा पुरा ||१०४॥ अपरा घूप से किया हुआ चिन्न दिखलाई नहीं देता है और क्षोद्र की धूप से धूपित होने पर दिखाई देने लगता है (पहले की तरह) चित्रं नाध्याऽपरा धूप स्पष्टरोदिति भितिगं, पूरा धूपेन तु स्पृष्टं तज्जहाति परोदनं ||१०५॥ दीवाल में लगा हुआ चित्र नार्थ्यपरा की धूप से रोने लगता है वहां पूरा धूप (दाहगरु) की धूप से रोना छोड़ देता है। मुंचति प्रतिमा आणि मदनेनां जनेन च, पूरिता क्षि युगा स्पृष्टा पुरुधूपेन भूयसा ॥१०६॥ मदन (नेनफल) और अंजन को आंखों में लगाने से मूर्ति की आंखों से आंसू निकलने लगते हैं और पुरु (दाहागुरु) की धूप से वही फिर साफ हो जाते हैं। लघु काष्टमयी राष्टि भ्रमरा पूरितोदरा, निरालवाचरे तिष्ठत कुर्वति विस्मयं जगत् ||१०७॥ SSIOSRI5015251DISPER०९६P/525105572758ISTRISTRIES

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