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CASSISOISTRISTRISTR5 विधानुशाशन 25THRISTD3535TOISS
प्रध्वस्त धाति कर्माण केवल ज्ञान भास्कराः, कुर्वन्तु जगतः शांति वृषमाद्याजिनेश्वराः
|| ७३॥ जिन्होंने ज्ञाना वरणादि चार धाति कर्मों का नाश किया है अज्ञान और संशय हटाने के लिये केवल ज्ञान सूर्य के समान तेजस्वी है ऐसे वृषभादि जिनेश्वर तीन लोक को शांति प्रदान करे।
शांत्यष्टकेन सं स्तुत्य शांतिभट्टारकं जिनं, अनंतरं च पुण्याह मंत्रं शांति करं पठेत
||७४॥ इस प्रकार श्री शांतिनाथ जी भट्टारक की शांत्यष्टक से स्तुति करके इसके पश्चात शांति करने वाले पुण्याह मंत्र को पढ़े।
ॐ पुण्याहं पुण्याहं प्रयंताम प्रयंताम भगवंतो हतः सर्वज्ञा: सर्व दर्शिनः स्त्रिलोकेशास्त्रिलोक प्रद्योतन करा:-ॐ वृषभा जित संभवाभि नंदन सुमति पद्म प्रभुसुपार्श्वचंद्रप्रभुपुष्पदंतशीलश्रेयांसवासुपूज्य विमलानंतधर्मशांतिकुंखुवर मल्लि मुनि सुव्रत नमि नेमि पार्थ श्री वर्द्धमानाः शांति करा सकल कर्म रिपु विजय कांतार दुर्गाविष में रक्षन्तु नो जिनेन्द्राः सर्व विदक्ष श्री ही पति युति कीर्ति बुद्धि सरस्वती शांति श्रांति मेया विन्य श्वाघ लेख्य मंत्र साधन चूर्णप्रयोग प्रस्थान गमनसिद्धि साधनाय अप्रतिहत कीर्तयो भवंतु विद्या देवता नित्यमर्ह सिद्धाचार्यो पाध्याय साधवश्चातुर्वर्णाः संघ सहिता आदित्य सोमांगारक बुध वृहस्पति शुक्र शनि राहु केतु नवग्रहाश्चनः प्रीयंतां प्रीयतां तिधिकरण मुहूर्त लग्र देवता वास्तु देवता इह चान्ये च ग्राम नगरादि देवता स्ते सर्वेगुरूभक्ता अक्षीण कोश कोष्टागारा भवेयु द्दनि तपो नित्य मेवमातृ पितृ भ्रातृ स्वसूदुहित पुत्र पौत्र मित्र स्वजन संबंधी बंधु वर्ग सहितस्य धन धान्यैश्वर्य द्युति वलयश स्कीर्ति वर्द्धनाय सामोद प्रमोदोत्स ततः शांति भवतु पुष्टि भवतु काम मंगल्योत्सवा संतु शाम्टातुं पापानि शाम्टांतु धोराणि पुण्यं वदतां धर्मों वदतां श्यायुर्वद्धतां कुलं गात्रं चाभि वर्द्धतां स्वस्ति भद्रं चास्तुनःहतास्ते परिपंथिनःशात्रवो नियनं यांतुनिःप्रतिधमस्तुनःशिवमतुलमस्तु सिद्धाः सिद्धि प्रयच्छंतु न स्वाहाः ।।
पुण्याह मंत्र: जिन स्नानाभि सर्व शांति मंत्राभि मंत्रितैः सिंचेदु परिसाटास्य प्रसन्न हृदयो गुरूः
।।७४ ॥
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