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CHRI51005215RISIS विधानुशासन PSIODIOSRISTOTSIDISS
ग्रथांतर नक्षत्र वृक्षा अथ वक्ष्यामि नक्षत्र वक्षानागमलक्षितान्, पूज्यानायुष्य दां चैवव वर्द्धनात् पालनादपि विषदधात्री तरु हेम दुग्धाजम्बू स्तथा रखदिर कृष्ण वंशा अश्वत्थ नागौच वटः पलाशाल्पक्षस्तथा भ्वष्ट तरु क्रमेण बिल्याजुनी चैव विककतोथ संकेसराः शम्बर सर्ज वजुला सपनसाकवि शमी कदम्बास्तथाम निम्बोमधुकद्रुमः क्रमात अमी नक्षत्र देवत्या पक्षास्यु सप्त विशंति अश्चिन्यादि क्रमादेषामेषा नक्षत्र पद्धति यस्त्वेषा मामजन्म ऋक्षा भाजा भर्त्य: कुटदिफजादीन्मदांध:
तस्यायुष्यं शअरी कलत्र च पुत्रं नश्यत्येषां वर्द्धते वदनायैः अब नक्षत्रों के वृक्षों के नाम और लक्षण कहते हैं जो अपने जन्म के नक्षत्र के वृक्षों को पूजता है, सोचता है और पालता है उसकी आयु की वृद्धि होती है। अश्वनी = कुचला
भरणी = आमला कृतिका गूलर = सत्यानाशी रोहिणी = जामुन मृगसिर = खेद
आद्रा
अगर पुनर्वसु = बांस
पुष्प
पीपल अश्लेषा =नागकेशर
मघा
घड़ पूर्या = ढाक
उत्तरा
पाखर हस्त =पाढ़
चित्रा
चेल वाती = अर्जुन
विशारवा -
रामवयूर अनुराधा = पुत्राग
ज्येष्श = लोघ = साल
पर्याषाढ़ा = जलवेत उत्तराषाढ़ा = पनस
श्रवण = आक धनिष्टा = खेजड़ा
शतभिषा = कदम्ब पूर्वाभाद्र पद = आम
उत्तराभाद्रपद- नीम रेवती
= महुया जो मनुष्य मदांध होकर अपने जन्म नक्षत्र को औषधि आदि के काम में लाता है उसकी आयु लक्ष्मी स्त्री पुत्रादि नष्ट हो जाते हैं और जन्म नदात्र वृक्ष को जल आदि के द्वारा बढ़ाने से आयु आदि की दृद्धि होती है।
___ इति पुष्टि विधानम् CSIRIDICTUDISCISIOTECISI९९५ APRISTOTSTORIRISTRISATES
भूल