Book Title: Vidyanushasan
Author(s): Matisagar
Publisher: Digambar Jain Divyadhwani Prakashan

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Page 1046
________________ SETOISTRISSISTRISRTE विद्यानुशासन 1551525IOTSTOISTD35 वहिरष्टाबुज पत्र कष्टोजया जमादि संबोधनं विलिवेन्मोहय मोहयामुक नरं वश्यं कुरू द्विर्वषट ॥२०६।। कौं पत्राग्र गतं तदेतंगत हीं ह्रीं च बाह्ये लिवेच्च स्वा स्त्री स्त्रू पुनरूक्ता मंत्र वलयं स्त्रों स्त्रः प्रकुटा द्वहि यंत्रं मोहन वश्य मिदं भूजे विलिरव्याचोत धतूरस्य रसेन मिश्र सुरभि द्रव्टौ भवेन्मोहनं ॥२०७॥ एक आठ दल कमल की कर्णिका में नाम को है ही हैं स स वव और ठ से घेर कर उस के चारों तरफ गोलाकार में सोलह स्वर लिखे फिर बाहर आठों पत्रों में पूर्व आदि क्रम से नीचे आठ मंत्र लिखे। अये जटो मोहय मोहय अमुकनरं वश्यं कुरु कुरु वषट्। अये जंभे मोहय मोहय अमुकनरं वश्यं कुरु कुरु वषट्। अये विजय मोहय मोहय अमुकनरं वश्यं कुरु कुरु वषट् । अये मोहे मोहय मोहय अमुकनरं वश्यं कुरु कुरु वषद। अर्य अजिते मोहय माहव अमुकनरं वश्यं कुरु कुरु वषट् । अये स्तंभे मोहय मोहय अमुकनरं वश्यं कुरु कुरु वषट् । अये अपराजिते मोहय मोहय अमुकनरं वश्यं कुरु कुरु वषट्। अये स्तंभिनि मोहय मोहय अमुकनरं वश्यं कुरु कुरु वषट्। पत्र के कोने में अंदर की तरफ क्रों और बाहर दोनों तरफ हीं ह्रीं लिखकर गोल मंडल बनाकर उसमें श्रां श्रीं धूं श्रौं श्रः बीजों को लिख्खे और पूजन करे। इस मोहन वश्य नाम के यंत्र को भोजपत्र पर घतूरे के रस और सुगंधित द्रव्यों से लिख्खे तो मोहन होता है। ही मध्ये नाम युग्मं शिरिव पुर घटितं तस्य कोष्टेषु वामं हीं जंभे होम मन्यत पुनरूपि विनयं हीं च मोहे व होम ह्रीं तत्कोशंतरालेष्वध गज वशंकत बीज मन्यत तदने बाह्ये ही स्वस्य नाम्नां तरितमथ वहि: धूलिरवेत् साध्यनाम्ना ॥ २०८ ॥ कुंकुम मधु हिम मलयज यावक गोक्षीर रोचनागरुभिः मग मद सहितैः चिलिरवेत कनय मुयंत्रं जगदश कत् ॥२०९॥ SISTRISTRISADIESISTER5R०४०PISIOS5I0RSISTERISIO505

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