Book Title: Vidyanushasan
Author(s): Matisagar
Publisher: Digambar Jain Divyadhwani Prakashan

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Page 1082
________________ O5PSPSPS विद्यानुशासन 975969595951915 कंठ में वारि बीज (वं) लिखे उसको रेवर के अंगारो में तपाये जाने से पृथ्वी में हृदय और आकर्षण होता है। ह्री मध्ये स्थित नाम दिक्षु विलिवंत कों तद्वि दिश्वाप्यज बाहय्ये स्वास्तिक लांछितं शिरिख पुर रैफै वहिश्चावृतं तद्वा ग्रिपुरं त्रिमूर्ति वलयं वहे पुरं पावनै पिंडै: वैष्टित मग्नि मंडल मंत स्ते द्वेष्टितं चाकुं शैः ॥ ३७ ॥ वाह्य पावक (अग्रि मंडल) वलयितं मंत्रेण देव्या स्ततो वायुना त्रितयेन वेष्टितमिदं यंत्रं जगत्युत्तमं । श्री खंडागुरु कुकुमाद महिषी कपूर गोरोचना कस्तूरादिभिः रूंध भूर्ज लिखितं कुर्यात् सदाकर्षणं ॥ ३८ ॥ ॐ ह्रीं रेफ चतुष्टयं शिविमति वाणननक्तः पिडं संभूतं, तद् बमु पंचंक ज्वलयुगं तत्प्रज्वल प्रज्वल हूं युग्मंधण युग्मधूं युगलकं धूमांध कारिण्यतः शिघ्रद्वेहरा मुकं वशं कुरु वषट् ॥ देव्या सु मंत्र स्फूट ॐ ह्री र र र ज्वालाममालिनी ह्रीं क्लीं ब्लूं द्रां द्रीं ह्ल्यू ह्रां ह्रीं हूँ ह्रौं ह्रः ज्वल प्रज्वलं प्रज्वल हूं हूँ धन धन यूं धूं धूमांद कारिणी शीघ्र एहि एहि अमुकं वश्यं कूर करू वषट् ॥ देव्या मंत्र संपुट उदीची मंत्र ह्रीं के बीच में स्थित नाम की दिशावों में क्रों और विदिशाओं में अज (ॐ) लिखे। बाहर स्वास्तिक के चिन्ह याला अनि कामंडल बनाकर रेफ (र) से वेष्टित करे, फिर एक दूसरे अग्निमंडल के बार (त्रिमूर्ति) ही का वलय देकर अग्निमंडल बनावे, फिर उसके बाहर वायु (पवन मंडल के पिड़ो से वेष्टित करके अग्नि मंडल बनावे और उसको अंकुश क्रों से वेष्टित करे । उसके बाहर गोलाकार में अग्रि मंडल बनाकर उसको देवि के मंत्र से वेष्टित करे । इस यंत्र को श्रा खंड अगर कपूर केशर महिषी (औषध) गोरोचन और कस्तूरी आदि से भोजपत्र पर लिखने से यह सदा ही आकर्षण करता है। ॐ ह्रीं चार रेफ (२) (शिखिमति (ज्याला मालिनी) उसके पास पांच बाण ह्रीं क्लीं ब्लूं द्रांद्री और अनल पिंड़ (अग्निपिंड़ हम्ल्यू) उसके पांच बीजाक्षर हाँ ह्रीं हूं ह्रौं हः ज्वल प्रज्वल हूं हूं धग धग धूं धूं घूमांध कारिणी फिर शीघ्र दो बार एहि एहि अमुकं वशं कुरू कुरू वषट् । यह देविका मंत्र सम्पुट करने का मंत्र है। 959595 YOYSKAŁ •VE PS2/SP/52/5252525

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