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फिर उन भगवान की ग्रह के रंग के गंध आदि छत्र वस्त्र ध्वजा और महा नैवेद्य तथा नृत्य गीत और बाजे से विधि पूर्वक पूजा करे।
इति जिन अभिषेक विधि:
अथः दान विधि दद्यादा हारादीन पूजा दिवसे ष्वमीषु
सर्वेषु ग्रह पीड़ित मुनि क्षांत्युपाशक श्राविका भ्यश्च ॥३२॥ पूजा के दिनो से सभी ग्रह से पीड़ित पुरुष शांति उपासक (मुनि) आर्यिका श्रावक और श्राविकाओं को आहार आदि दे।
द्रव्येण येन दत्तेनाचार्य: सुप्रसन्न ह्रदयः, स्थात् ग्रह शांत्यंते दद्यात्त तस्मै श्रद्धया साध्यः
॥३३॥
ग्रह शांति के अंत में आचार्य जिस द्रव्य को पाने (देने) पर प्रसन्न चित्त हो जाए साध्य उनको वही द्रव्य श्रद्धा से दे। .
इति दान विधि
रोग शांति विधि रोगा मूर्द्धनि चेद्योक्त विधिना भानोर हीं ट्रं यजेत्, वक्रे चंद्रमसः कुजस्य ह्रदये कठो बुधस्य र्द्वयोः पाई शुक गुरोस्तु दानव गुरोः पृष्ट शने आँघयोः
पीडा चेत्य दयोरनेन विधिना राहोरहि: पूज्यतां ॥३४॥ यदि सिर में रोग हो तो कही हुई विधि के अनुसार सूर्य नाग की पूजा करे । मुँह में रोग हो तो बुध के नाग की पूजा करे। दोनों पार्थ (कोख) में कष्ट होतो वृहस्पति के नाग की, पीठ में रोग होतो शुक्र की, जंघा में पीड़ा हो तो शनि के नाग की और यदि दोनों पैरों में रोग हो तो इस विधि से राहु के नाग की पूजा करनी चाहिए।
स्वस्थान रुजासु सनीष्वेवं पूज्यो ग्रहोनुकूलोपि
असतीष्वथा नु गुणाना तासमुना संयजे द्विधिना इस प्रकार इन स्थानों में रोग होने पर भी ग्रह के अनुकूल होने पर भी उसकी गुण के अनुसार विधि पूर्वक शांति के लिए पूजा करे।
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