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SSIONSRISTRISADISADIS विधानुशासन BASTISTRISRASTRI5105
इत्थं होम विधिश्च स्वपन विधानं यंत्र धारण च,
कथितानि सर्व शांति क्रिया विधानानि कार्तस्न्टोन ॥२१६ ।। इस प्रकार होम विधि स्नान विधि और यंत्र को धारण करने की विधि का वर्णन करके सर्व शांति विधान की क्रिया को कार्तरन्य (सम्पूर्ण रुप) से कह दिया
एकैक मप मीषां दातुमलं सर्व शांति कर्म फलं
किमुच समवाय एषाम नुक्ता नां विधानौ ॥२१७।। इनमे से एक एक को देने से ही सति कर्म का क्या मिला है फिर अला विधान को जानने वाले यदि इन सब को दे तो कहना ही क्या है।
सर्व शांति रिति प्रोक्ता प्रपंचित वहु किया इति मत्युजय विधानं,
अथ नीरांजना दीनि वक्ष्याम्याधि कृतान्यहं ॥ २१८॥ इसप्रकार बहुत क्रिया के विस्तार वाली सर्वशांति का वर्णन किया गया है। मृत्युंजय विधान सम्पूर्ण हुआ , अब अधिकार में आए हुए नीरांजन (उतारा) आदि की विधि का वर्णन किया जाएगा।
नीरांजन विधि परि महितेन पिष्टेन कारयेत्स्वस्थवर्ण युक्तानि
प्रवराष्ट मातकानां मुरखान्यालंकार सहितानि ॥२१९ ॥ मल कर पिसी हुई सिद्ध मट्टी से अपने अपने वर्ण के अनुसार सहित मुख्य अष्ट मातृका देवियो के मुख अलंकार सहित बनाए । .
बहु चरक मलराज कुसुमाक्षत दीप धूप सहितेन
एकैकेन मुखेन तु निवर्द्रीत्प्रति दिन विधिना ॥२२०॥ और बहुत प्रकार के चरु नैवेद्य चंदन पुष्प अक्षत दीप और धूप से प्रति दिन एक एक के मुख का भोग लगाए।
कूटय झंकांत चांत ठकारा वुधि सांत पिंडसंभूतैः __ मंत्रं निवर्द्धोन्मातृके बलिं गृह ग्रह होमांतैः ॥२२१॥ ॐल्यूं म्ल्ब्यूँ इम्ल्यूँ बम्ल्यूँ छम्ल्ट' ठम्ल्यू हल्यूँ बीजों में से उस मातृका का पूर्वोक्त क्रम से नाम लगाकर मातृका के बलिं गृहण गृहण स्वाहा मंत्र से बलि दे।
ॐ ह्रीं क्रों क्ष सर्वलक्षण सम्पूर्ण स्वायुध वाहन चिन्ह सहिते हे ब्राह्मी बलिं गह
गृह देवदत्तं रक्ष रक्ष स्वाहेत्यादि ॐ ह्रीं क्रौं हम्ल्यू इत्यादि मंनिवर्द्धनं कुर्यात् ॥ SSESSIOSDIHIRORISTRPIRICISTRICT58130TRIES