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SSIRISTRISRADRISTRIBY विद्यानुशासन 50ISTERISTRI5DIST की चासनी चढ़ाकर सुखालेवे इसमें से एक गोली लेकर दूध से पिलावे। उसको पीने से एक मूहुर्त (४८ मिनट) पीछे रति कार्य प्रारंभ करे। इसे निरन्तर प्रोढ़ा कामिनी का भोग करते हुये भी उसकी क्रम से वीर्य की वृद्धि होती है। वीर्य स्खलित होने पर भी दृढ़ा आकर रहेगा इसमें कोई संदेह नहीं है।
दग्धमं कोल मूलं तु कप्पूर कुंकुमं निशा, रोचनं सहदेवी च समं सर्व प्रलेपयेत्
॥१॥
विषमुष्टिक तैलेन लिप्त लिंगो ह्येनेन, वैनरो नारी सहस्बैकं गच्छन वीर्य न मुंचति ।
॥२॥ जली हुयी अंकोल की जड़, कपूर, कुंकुम, हल्दी, गोरोचन, सहदेवी इन सबको बराबर लेकर विषमुष्टिक (कुचले) के तेल के साथ लिंग पर लेप करे तो पुरूष इस लेप से हजार स्त्रियों के पास जाने पर भी वीर्य नहीं छोड़ता है।
षड बिन्दुद्भय चूर्णेः रवर मंजराः शिफा समायुतौ,
दियेस कराल सत्य हो मीयः शुकः नवनवति (षड् बिन्दु) की जड का चूर्ण खर मंजरी (आंधी त्राड़ा) की जड़ समान भाग लार दिवस कर (आकड़ा) तूल (रुई) की बनाई हुई बत्ती का दीपक जलाने से वीर्य का स्तंभन करता है।
तुंडी मूसली निगुडी त्रिभुवन विजद्या हस्तिनी, घत मधुशर्कराभिगुटिकाभिः स्तंभन कुरुते
॥४॥ तुंडी() मूसली निर्गुडी त्रिभुवन विजया (भांग) हस्तिनी (इंद्रायण) घृत शहद शकर मिलाकर बनाई हुई गोली स्तंभन करती है।
कजली कृत सगंध सूतकं तुल्य भाग कनकस्य च बीजं , मईयेत् कनक तैल युतः स्यात् कामिनी जन विधुनन सूतः।।५।।
अस्य वल्ल युगलं स सितंवा सेवितं हरति मेह गदीये.
वीर्य पुषिटकरणं कमनीयं द्रावणे निधुबने वनितानां ॥६॥ शुद्ध गंधक और शुद्धपारद को बराबर लेकर कजली बनाकर इसके बराबर शुद्ध धतूरे के बीजों के चूर्ण को मिलाकर धतूरे के तेल के साथ घोटकर बनाई हुई दो गोली को शकर सहित सेवन करने से यह कामिनियों के मद को भंजन करता है यह लिंग के सब रोगों को नष्ट करता है वीर्य की अच्छी पुष्टि करताहै तथा स्त्रियों को (निधुवन ) संभोग में द्रावण करता है। CHECISIOSRIDESIRAISIS९०३PSESSISTRISTRESSIRIDESI