________________
ಗಣಪಥದತಿ ಇZIRRIಡ ಪಂಥವರಣ
कृत्रिमं प्रदर द्वंद्वं सद्यः प्रशम माप्तु यात्, जल धोते पुनः शूते लेघिते रिमन् तया स्त्रिया
॥७२॥
कल्कितं किंशुकस्या स्थि क्षीरेण क्षौद्र मिश्रितं, नाशयेदातवोद्भति मृतौ पीतं दिन त्रयं
॥७३॥ किंशुक (ढाक के फूल) की अस्थि (वल्कल) के कल्क को दूध और शहद के साथ प्रातु काल में तीन दिन पीने से प्रदर दूर होता है।
गृहीतः पौष्प तारायामृतौ वद्धः करे स्त्रियाः, संध्यादचत्य वंदाकः संभूतिं पुष्पगर्भयोः
॥७४।1 अश्वत्थ (पीपल) के वंदाक (बादा पेड़ में उगा हुआ दूसरा वृक्ष) को पुष्य नक्षत्र में लेकर ऋतुकाल में स्त्री के हाथ में बांधने से रुद्ध (रुका हुआ) गर्भ का पुष्य (स्त्री का रज) उत्पन्न होता है।
पलाश बीज मधुना रखर मत्रेण वा पिबेत वारिणा वा बधु स्त स्याद् धारणं गर्भ पुष्पयोः
॥७५॥ यदि कोई यह शहद या गधे के सूत्र के साथ बलातफाक) केबीज (पलाश पापड़ा) को पी ले तो उसके गर्भ उत्पन्न करने वाला रज उत्पन्न होता है।
शीतेन वारिणा कल्क मंजनामल कोद्भवं, पुष्पे पीत मृगाक्षीणामृतौ गर्भ च नाशयेत,
॥ ७६॥ अंजन और आमले के पुष्य के कल्क को ठंडे पानी के साथ ऋतु काल में पीने से मृगाक्षी (स्त्रियों) का गर्भ व ऋतु दोनों ही नष्ट हो जाते हैं।
चूर्णस्सित मरिचानां पीतः सलिले: गुडान्वितो नाया,
आर्तव समो त्रिदिनं विनाशयेत् पुष्पमपि गर्भ ॥७७ ।।। सफेद काली मिरचों के चूर्ण को गूड़ में मिलाकर जल के साथ पीने से ऋतु काल के समय पीने से स्त्रियों के ऋतु धर्म नहीं होता और गर्भ भी नहीं रहता है।
पिबति.प्रसूत समये जपा प्रसूनं विमर्च कांजिकया, न भवति सा प्रसूनं तेऽपि तस्या न गर्भ: स्यात्
॥७८ ॥
SISO15015555DISTO55105७८१PISOTSIDISTRISRTICISOTRY