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STERIOTSETTETSPSC विद्यालुशास्भन VDOISSISTRICISTOIES
नाम्रः कोणेषु दत्वा लमय परिवृतं वाट्रिना बिन्दुनावालं, बीजै र्वेथितं तत कुलिश वलयितं वेष्टितं ठत्रयेण ॥१२६ ।। भूले गोरोचना कुंकुमं लिरिवत्त मंतः कुंभ काराग्र हस्तान्मत, स्नानमादाय कृत्वा प्रति कृतिमथ तद यंत्र मास्टये निधाय ।। १२७॥ तहकं परपुष्ट कंटक चटौन्नित्वा शराव द्वय स्यांते स्तां, प्राणिधाय सम्यगथ जंभे मोहिनी संयुजा स्वाहा मंत्र पदेन॥१२८ ॥ पीत कसमैरभ्यच्चर्य यातःपमान प्रत्यर्थि, व्यवहारिणो विजयते तज्जिति का स्तंभोत्,
||१२९॥ नाम के कोणो में लंलिखकर, उसको बिंदु सहित ठसे वेष्टित करे। फिर उसके चारों तरफ दो कुलिश (चज) मंडल बनाकर पहले को लं बीज से और दूसरे को तीन ठ से वेष्टित करे। इस यंत्र को भोज पत्र पर मोरोचन और कुकुम से लिखाभिर कुम्हार के हाथ की मिट्टी लाकर उसे अपने प्रत्यार्थी की छोटी सी मूर्ति बनाकर उसके मुख पर यह यंत्र रख दे। उस मूर्ति का मुँह मजबूत कांटों से चीरककर उसको दो मिट्टी के शराबे में रखकर इस मंत्र से पीले फूलों से पूजन करे तो उसके . विरोधी व्यापारी की जिह्वा का स्तंभन होता है।
ॐजंभे मोहे अमुकस्य जिव्हां स्तंभय स्तंभा लंठः ठः स्वाहा ।।
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