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SXSTOI501510550150150 विद्यानुशासन ASIRESIDI5DISDISEASE सुगंध मूषक (छडूंदरी) के चूर्ण को हाथी के सूंटे पर लेपकर देने से उस चूर्ण के प्रभाव से हाथी मस्त नहीं होता है।
क्षिति शतनया चूर्णः कीर्णोनसि निपातयत्, तुरंगं तत्प्रतिकारं पान तस्य वचादनं
||१८१॥ क्षिति शतनया चूर्ण (असगंध) के चूर्ण को सूंघने से घोड़ा पृथ्वी पर गिर पड़ता है चच को खाने से वह फिर खड़ा हो जाता है।
कृष्ण जीरक जैशूणे सक्ष्मै पणिस्य रंगः,
आय स्वाद् वाजिन स्तक जाताक्षः सोनू वीक्ष्यते ॥१८२॥ काले जीरे के बारीक चूर्ण को नाक में जाने से शुरु में घोड़ा आंख से नहीं देख सकता है किंतु मढे के आंख में जाने से वह देखने लगता है।
एवं कतंक रोगाभ्यां पथक निगदिता,
अत्र मोक्षविधिः सामान्य विमोक्षःस्यान्मारण कर्म प्रतिकारः ॥ १८३॥ इस प्रकार पुरुष कृत रोगों को छुड़ाने की विधि का पृथक वर्णन किया गया है। मारण कर्म का प्रतिकार 'इन रोगों को छुड़ाने का सामान्य उपाय है।
कत्यै एतेषामांतंकानां प्रोक्तान्मंत्री साक्षान्मधुरं,
क्षन्यतां नणां प्राणान् स्वों तिष्ठं दीर्घकालं ॥१८४ ।। इन प्राण घातक रोगों के उपाय को साक्षात जानकर मंत्री पुरुषों के प्राणों की रक्षा करता हुआ दीर्घकाल तक स्वर्ग में रहे।
इत्थं प्रोक्ताः कृतिमास्ते च रोगास्ते चा ना मारणे क्षुद्र कल्पाः,
दिकालादि प्रक्रिया कल्पतेषु ज्ञातव्या सा मारणे या प्रयोज्या॥१८५॥ इस प्रकार कृत्रिम रोग अनर्थ और मारण के छोटे छोटे उपायों का वर्णन किया गया है जिनको मारण कर्म में प्रयोग करना हो तो उनको दिशाकाल आदि की प्रक्रिया ही को जानकर काम में लाएं।
इति कृत्रिम रोग प्रक्रिया विधानं ॥१४ ।।
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