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अनेन मृत्यु मंत्रेण लक्ष रूप प्रजाप्पतः, सिद्धेन मंत्रितैर्दद्यात् साध्य पादरजीयुतैः
॥२॥
इस मृत्यु मंत्र को एक लाख जप से सिद्ध करके मंत्री साध्य के पैर के नीचे की धूल को मंत्रित
किये हुए
बलिं द्रव्यैवलिं वाम पार्श्वेवामेन पाणिना,
सप्ताहः तस्य साध्यस्य स्वयं उच्चाटनं भवेत्
॥ ३ ॥
बलि के द्रव्यों से बायें हाथ में बाई तरफ को सात दिन तक बलि देवे तो उस साध्य का स्वयं ही उच्चाटन हो जावे ।
उर्द्ध कर्णे विरूपाक्ष लंब स्तनि महोदरि हन शत्रून त्रिशूलेन क्रूद्धस्यापि च शोणितं शोणितं शोणितं शोणितं शोणितं दह दह पच-पच मरा-मथ मारा-मास्य शोषय शोषय आसादय आसादय नाशय नाशय हुं फट ठः ठः ॥
सिद्धेदसौ महाकाली मंत्री लक्ष जपादंमु, अंतः कपाल मालिख्य तस्मिन् विरचिताशनः
॥ ४ ॥
यह महाकाली मंत्र एक लाख जप से सिद्ध होता है इसको कपाल के अन्दर लिखकर भोजन बनाकर
जपेच्तं मंत्रं तन्मूर्ते दक्षिणास्याः पुरो, भवशमासादुच्चाटनादीनि कुर्य्यात् कर्माणि विद्विषां
॥ ५॥
मूर्ति को दक्षिण की तरफ मंत्र जपे इससे यह मंत्र एक मास के शत्रु का उच्चाटन आदि करता है।
निंब पत्रांबु पिष्टैः स्तद्वी जैरूपवत्यं विग्रहं, तज्जत्या स्निग्धयो मध्ये गच्छेत द्वेषस्तयो भवत्
॥ ६ ॥
नीम के पत्तों को पानी में पीसकर उससे और उसके बीजों से शरीर पर लेप करके इस मंत्र को जपकर यदि दो प्रेमियों के बीच में चला जावे तो उन दोनों में द्वेष हो जाता है।
सहस्त्र किरणस्याभिमुखो भूत्वा जपेदमुं, उद्धर्व वाहु दिने रपैरुत्सादो भवति द्विषः
॥७॥
यदि इस मंत्र को सूर्य की तरफ मुख करके और ऊपर की तरफ हाथ करके जपे तो शत्रु का थोड़े दिनों में ही उत्सादन (उधाटन ) हो जाता है।
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