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e5e6e59655 विद्यानुशासन 259595
विद्वेषण
अथ विद्वेषणारव्यस्य विधि कुचस्य कर्म्मणः, प्रवक्ष्ये मंत्र यंत्राद्यैरावै रूक्तं मुनीश्वरै:
॥ १ ॥
अब कुछ कर्म विद्वेषण को मुनिराजों द्वारा कहे हुए को मंत्र यंत्र आदि का वर्णन किया जावेगा ।
काल्या सहस्त्र जाप्पात सिद्धि ह्रीं ह्रः इत्यमुं मंत्रं स निधनायो, विदर्भित मन्य तरेणाभि लिख्य लेखिन्या
ह्रीं ह्रः काली देवी के इस मंत्र को एक हजार जप से सिद्ध करके इन दोनों अक्षरों के अन्दर नाम को विदर्भित करके ( गूंथकर ) किसी भी कलम से लिखो ।
हेम कृतया शरावे गोपिताक्ताय भागवैक स्मिन, द्विकपक्षे नान्यत्र तु माहिषी युता ग्रेण तद्वयं निखनेत्
॥३॥
सोने के बने हुए एक सकोरे में गोपिताक्त (गोरोचन) को एक भाग लेकर द्विक (कौवे ) पक्षी के पंख और भैंस के सींग के अग्र भाग से दोनों (नदी के किनारो ) को खोदें ।
नद्यास्तीरे द्वितीये विद्वेषः स्निग्धयोर्म्महान भवति, तत्तीर संगतावपि नत्तयोः स्यात्संग तिंर्जतुः
॥ २ ॥
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उसको नदी के दोनों किनारों पर गाइने से दो घनिष्ट प्रेमियों में भी विद्वेष हो जाता है और उन भागों को नदी के किनारे पर लाने से भी फिर उन दोनों में मेल नहीं होता ।
चतुर्मुष्टिकै मर्कटिक घोरे विद्वषिणि विद्वेष कारिणी घोराघोरयोमुकयोः काकोलका दिवत्परस्पर द्वेष कुरु कुरु ॥
काकोलूकच्छद युत पाणिभ्यं तर्पयेदमुं मंत्र, काल्या जपं ततः स्यात् विद्वेषः स्निग्धयोस्सुमहान ॐ विद्वेषिणि अति वीर्टो उत्सादय उत्सादय स्वाहा ॥
॥५॥
कौवे और उल्लू के पंख युक्त अपने दोनों हाथों से इस मंत्र का पानी से तर्पण जप करने से बाद
में अत्यंत घनिष्ट मित्रों में भी विद्वेष हो जाता है।
कुर्यात् चितानि दग्धो रिष्टा लये मुना जप्तः, मूर्ध्नि क्षिप्तो द्वेषच्चाटै गेहे तु तन्नाशं
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॥ ६ ॥
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