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विधानुशासन
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सोने या चांदी के बर्तन में बचे हुए बोशी के कान से लिंग खड़ा हो जाता है।
भावितं वस्त मूत्रेणषद्विन्दु रजनी रज:, पानेनान्नेन वा दत्तं शठभावानु जायते
।। १७४ ।।
बकरे के मूत्रमें भावना दी हुई षडबिन्दु () और हल्दी के चूर्ण को खाने या पीने से नपुंसकता हो जाती है।
तिल गोक्षुर यो चूर्णः छागक्षीरेण साधितः, ससितो मधुनायुक्तः षठं तां तां विखंडयेत्
॥ १७५ ॥
. बकीर के दूध के साथ तिल और गोखरू के चूर्ण को शक्कर और शहद मिलाकर खाने से नपुंसकता नष्ट हो जाती है।
मूत्र स्थाने शत्रौ स्वन्यते यस्य लांगली कंदः, षढत्वं तस्य भवेत प्रत्यानयनं तदुत रखननां
॥ १७६ ॥
शत्रु के मूत्र स्थान में यदि लांगली केद को गाड़ दिया जावे तो वह नपुंसक हो जाता है। उसको उखाड़ लेने पर वह ठीक हो जाता है यह उसकी प्रतिक्रिया है ।
भतुः साचैन्नारी सरेत उत्पत्ति काधि कल्क युतांभ:, दद्यात् स स्यात् षंठ स्तत्परि हतये पिवेदजाक्षीरं
॥ १७७ ॥
यदि स्त्री पति को सरेत (रेत) और उत्पत्ति कांधि () कल्क सहित पिला दे तो वह नंपुसक हो जाए उसको दूर करने के वास्ते बकरी का दूध पीयें।
नृपशूकास्थि वध्नीया दुष्ट्रास्थि विवर स्थितं, शय्या शिरस्थं दंपत्यों गुहया वयवो रिती
॥ १७८ ॥
रतिकाल में नृप ऋषभक, शूक (डुडुभ) की हड्डी को ऊंट की हड्डी में छेद करके बांधकर सिरहाने की तरफ शय्या पर रखने से दंपत्ति के गुप्त अंग और अवयव बंधे रहते है। वयस्य शकृत्कीट पिंडीतः कुरुते रतौ, वज्रं शय्या शिरोभाग स्थितं मिथुन गुह्ययो
॥ १७९ ॥
रतिकाल में गयय ( रोशपशु) के गोबर के कीड़े के पिंड को शय्या पर सिरहाने की तरफ रखने से स्त्री पुरुष के गुप्त अंग परस्पर बंध जाते हैं ।
सुगंध मूषिकाचूर्णे रालानं कृत लेपनं, तत् चूर्ण गर्भ हस्तंवान प्रप्रोति मदीद्वपः
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