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0519350150150150150 विद्यानुशासन VIODISIO51015105510451
भूत तह प्रतिमाममुना व्योषापामार्ण बीज संलिप्तां भ्रमयेत,
क्वाथ उदकोदर निहित मटो मुरवां स्थाद रिज्वरि कणर्युः ॥७॥ बहेड़ा के वृक्ष की लकड़ी को शत्रु की प्रतिमा बनाकर उस पर व्योष (सोंठ मिरच पीपल) और अपामार्ग के बीजों का लेप करने से वह भ्रम में पड़ता है और इनके काय के जल का पेट पर लेपकर औंधा लटकाएं तो उसको ज्यर होता है।
निर्मूलरधो वदनां कीलरायस व्याप्तां प्रतिमा, कृत्वा मंत्रोच्चारण पूर्वकं शिरो गृहीत
||८|| मंत्र पढ़ते हुए शत्रु को निर्मूल करने के लिए नीचे मुख की हुई प्रतिमा में अयस (लोहे) की कीलें गाइ कर उसके सिर को पकड़े।
!! ॐनमो काली मार स्वाहा॥
अनेन शत्रो परितस्य पादरजः पतनं,
तेनैव सो भमन्सतुं मरणं पानोति न संशयः इस मंत्र से शत्रु के पांवों की मिट्टी मंत्रकर शव डालने से उसाटा या उसका सर होता है इसमे सन्देह नहीं है।
॥९॥
तस्यो दरे शूल चलनम नेन होति नशंसयः, स्त्रियाः स्यात्प्रियायाश्च मारणां न च संशयः
॥१०॥ उसके पेट में बराबर दर्द होता है स्त्री का तथा उसके प्रियजनो का निश्चय से मरण होता है इसमें सन्देह नहीं है।
होमेनाशाधर कतकेन कृतना हत पल्लव संयुक्तन,
शनोभवति च मरणं न संशयो त्रैव वा चार्य: ॥११॥ आसाधरजी के होम विधान को मारण पल्लव (अर्थात् घे घे पल्लव) सहित करने से शत्रु का निश्चय से मरण होता है ऐसा आचार्यों ने कहा है।
श्री पूज्य पाद मुनिभिः प्रणीत मार्गेणा होमेन,
शत्रो भवति च मरणं न संशयो त्रैव नाचार्यः ॥१२॥ श्री पूज्य पाव भुनिराज के बनाये हुए होम विधान को करने से भी शत्रु का मरण निःसंदेह होता है इसमें कोई विचार नहीं करना चाहिए। SABIT5RISTRISTOTR5051200050STORISTSPIRIOTSIDESI