________________
STORISTORISTRI51005 विधानुशासन 205015RISTRISTRITICISM फिर उस वस्त्र को दो बार यक्ष मंत्र से एक सौ आठ बार मंत्रित किये हुए प्रसिद्ध नदी के उधूत (फें हुए) पवित्र जल से धोयें।
पध्यादुर्वा रवटिका शाल्योदन नालिकर दल पुष्पैः चंदन कुष्टीशीर कप्परग्रंथि पर्णायै :
॥७८॥ मंगल सुरभिः द्रव्यैरपि पूर्ववदेव कन्यया विधिना,
अस्पृष्ट भुवने वारे स कृतिके कल्पितै प्यानी ॥७९॥ पथ्या (हरड़) दुर्या (दोब) टाटिका (अड़िया) साठी लावलों का भात नारियल के पत्ते तथा फूल चंदन कूठ खस कपूर ग्रंथि (नागरमोथा) पर्णा (नागरोल के पान )आदि मंगल तथा सुगंधित द्रव्यों से पहले के समान ही विधिपूर्वक अस्पृष्ट (अंधेरी-कृष्णपक्ष) की भुवने (चतुर्दशी) को कृतिका नक्षत्र के दिन कन्या के द्वारा बनवाएँ।
सापु कत लेपनं तद्वस्त्रं रचितेषणाक्रियं,
पश्चात ववदतर वरकर किरण पकरे संशोषयदे हिनि ॥८०।। वह कन्या उन वस्तुओं का लेप उस कपडे पर करके जो नाप से बनाया हुआ है फिर उसको अहनि (दिनमें) खारकर (गर्मी करने वाला सूर्य) प्रकर (तेज बहुत से) किरणों संशोषय (सुखाये)
एवं कमैच बुहभि विधि बत पटस्ट, विहितस्य मध्ये कुष्ट युगा गरू केशर कर्पूर धनसारैः
॥८१॥
त्वक पत्रो शीरा सृग्मोर शिरवा केतक द्वय परागै:, लक्ष्मी श्वेताब्ज शमी कांता सूर्योषु पुंरवानां
॥८२॥
रक्तोत्पल सरसिजो जाती पुट मल्लिका प्रियं गुना, रंभायाः पद्मायाः पुन्नाग कमुक वकुलाना
॥८३॥
काकोलै रपि पुष्पैः पयसा गो: कपिल वर्ण देहायाः, भूम्या पतित तदगो मा रसेन महिषाक्षं गुग्गुलानां
॥८४ ॥
निसिन च शाल ब्रह्म कपित्थ कर्णिकराौः,
हिम पितारै पात्रै रत्नैः सह विनिहितैननियभि : ॥८५॥ CS0505125505051८२६ PASTRI50151235CTECISISTRI