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9595PSPSS विधानुशासन 2595959 POPS
प्रकाशितं येन जिनेन्द्र केनां शुभं च लोकेत्र विचारणीयं,
अतोयं मुक्तो न समासतो धुवं कुर्य्यान्न भव्यो न च सिद्धि मेति ॥ १३ ॥ श्री जिनेन्द्र देव ने प्रकट रूप से कहा है कि संसार में अशुभ कर्म करने का विचार भी नहीं करना चाहिए इसलिये यह सारांश में निश्चित है कि भव्य प्राणियों को मारण कर्म नहीं करना चाहिए इससे कोई सिद्धि नहीं होती है।
श्री जिनेन्द्रीयथादिष्टं भव्याः कुर्वतु धर्मकं, दशधा भिन्न को चैव कुर्वतु सदा हितंः
॥ १४ ॥
श्री जिनेन्द्र देव का यही आदेश है कि भव्य प्राणियों को सदा धर्म कार्य करना चाहिए तथा दश धर्म से भिन्न कोई काम नहीं करना चाहिए और सदा हितकारी काम करना चाहिए। धर्म पर आपत्ति आने पर ग्रंथांतर से उद्धत किए जाते हैं।
ब्रह्माणी काल रात्रि भगवती वरदे चंडि चामुंड़ नित्ये, मातगांधारी गौरी धृति मति विजये कीर्ति ही स्तुत्य पद्मे ॥ १५ ॥
संग्रामे शत्रु मध्ये जय ज्वलन जले वेष्टितं न्यैः स्वरास्त्रैः, क्षां क्षीं क्षं क्षः क्षणा क्षत रिपु निवहे रक्ष मां देवि पचने ॥ २६ ॥ ब्राह्माणी काल रात्रि भगवती वरदे चंडी चामुंड़ि नित्ये माता गांधारी गौरीधृति मति विजये कीर्ति ही स्तुत्य पझे इन १६ मातृका स्वरुपिनी स्वर रूपी जो अस्त्र है उनसे घिरी हुई युद्ध में शत्रुओं के बीज में अग्रि में जल में जिसने सब रिपु लोगों को आधे क्षण में नष्ट कर दिया है ऐसी है पद्मावती देवी क्षां क्षीं क्षं क्षः इस मंत्र से हमारी रक्षा करो।
ॐ ह्रीं श्रीं प्रां प्रीं क्लीं क्लौं पदमावती धरणेंद्र सहिताय क्षां क्षीं क्षं क्षः नमः स्वाहा ॥ इस मंत्र को हस्तार्क मूलार्क पुष्पार्क दिने पंच विंशति सहस्त्रेण २५००० दक्षिण दिशायां साधनं करके कृष्ण पुष्पों से काली माला से काले आसन पर बैठकर काले कपड़े पहनकर जाप करे तथा होम करे उसको शत्रु से भय नहीं होवे संग्राम में जय होवे अष्ट द्रव्य से पद्मावती जी का पूजन करे यंत्र पास में रखे ।
तस्य शत्रु भयं न करोति मृतिं गलति वा गृथिलो भवति
सोलह दल के कमल में १६ मातृका मंत्र लिखे मध्य में दम्यूँ लिखे चारों दिशाओं में क्षां क्षीं क्षूं क्षः लिखे ।
SP596959APPS ८०१ PSP/St