________________
252525252525 faengauean Y52525252525.
साष्टांशक कला स्नुक कलकं सहितं कथितं, जलं आदौ विलेपमालितं कचरोम निवर्हणां
11880 11
आठवें भाग थूहर के कल्क का जल में क्वाथ बनाकर उसका लेप करने से बाल और रोम सभी उड़ जाते हैं।
शिरीष सुमनश्चूर्णो धतूर स्व रसान्वितः निहितो शन पानादों कोति वधिरं नरं
॥ १४२ ॥
सिरस के फूलों के चूर्ण को धतूरे के स्वरस में मिलाकर खाने तथा पीने आदि से पुरूष बहरा हो जाता है।
शाल्मली तरू निर्थ्यासो हेमस्वरस भावितः, द्विषतं विदध्यात्वाधमन्नदिषु विमिश्रितः
॥ १४२ ॥
सेमर के गोंद को अथवा रस को धतूरे के रस में भावना देकर अन्न आदि में मिलाकर खाने से शत्रु अंधा हो जाता है ।
कनक फल शाल्मली तरु निर्यास शिरीष बीज चूर्ण युतं,
ਮਨ करोति भुक्तं मोहं वा धियं मांध्यं च ॥ १४३ ॥
धतूरे के फल सेमर का गोंद या रस और सिरस के बीजों के चूर्ण को खाने से पुरुष में मोह, बहरापन और अंधापन हो जाता है।
वाधिय्य मोहमांटां च द्विषामौषधयो गजं, ससिते माहिषी क्षीरे पीते सप्त दिनश्यति
॥ १४४ ॥
शत्रुओं की औषधियों के योग से हुआ बहरापन, मोह और अंधापन आदि शक्कर सहित भैंस का दूध पीने से तुरन्त ही दूर हो जाते हैं।
गुंजा फलानां स्नुकक्षीर भावितां तामुपेयूषी, चूर्ण ज्वालिता वर्त्ति रांध्यं कुय्याद्विपोनिशि
॥ १४५ ॥
रात्रि
थूहर के दूध में भावना दिये हुए गुंजा (चोटली) के फल के चूर्ण की बत्ती को जलाने से शत्रु में अंधा हो जाता है।
धूपो विदध्याद रात्र्यांध्यां गुंजा फल मूले हेमकुसुमकृतः, तत्प्रतिकार विधि: स्यान्धु पयः क्षीर पानं वा
eMPSP59599 ९२PS
॥ १४६ ॥
PSPSP5969