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SSIOSDISTRISIONSID5 विधानुशासन 9501501501501505
अथ कृत्रिम रोगानां प्रतिकारः प्रवक्ष्यते, बुध्वामरण देशीयान् पापानुपदिशतियान,
॥१॥ अब पाप रूप मरण धर्मवाले बनावटी रोगों को जानकर अब उनकी चिकित्सा का वर्णन किया जाता
ज्वरोलाटि गोगा महंती तामथा पदां, सपांगणिकृतीनां च यस्तो मोक्षामिह क्रमात
॥२॥ ज्वर उन्माद आदि रोगों वाली सब अंगों में विकार करने वाली आपदा के मोक्ष का वर्णन अब क्रम से किया जाएगा।
चंडेश्वर चंड कुठारेण ही गृह मारय मारय हुं फट् ये थे।
चंडेवराय हो मांतं संजपेद्विनयोदिकं, सहस्त्र दशकं मंत्री पूर्व मारुण पुष्पकैः
॥३॥ पहले मंत्री उपरोक्त मंत्र चंडेश्वरी की आदि में ॐ और अंत में स्वाहा लगाकर इसका लाल फूलों से दस हजार जाप करे।
ब्राह्मण मस्तक केशैः कृत्वा रज्जं तयानर कपालं, आयेष्टय साध्य देहो द्वर्तन मल केशः पाद रज्जा
॥४
॥
मनुजास्थि चूर्ण मिश्रं कृत्या प्रेतालटो विनिक्षिप्तं,
ज्वरयति मंत्र स्मरणात्सप्ताहादस्थि मथनेन ब्राह्मण के सिर के बालों से रस्सी बनाकर उससे एक मनुष्य की खोपड़ी को लपेटकर साध्य पुरुष के उयटन मल केश और पांवों के नीचे की धूल और मनुष्य की हड्डी के चूर्ण को मिलाकर इन सबके चूर्ण को मिलाकर श्मशान में रखकर (गाड़कर) और सात दिन तक मंत्र का स्मरण करते हुए हड्डी को मलने से शत्रु को ज्यर हो जाता है।
ॐनमो भगवते रुद्राय श्मशान यासिने रयड्वांगडमरुक हस्ताय नत्या प्रियाय ह हह अदहासाय मुरुप्रवेशाय युनु पुनु कंपय कंपट ज्वरेणा वेशय आवेशय फट ये ये ॥
आलिप्यते सग पस्तस्य भीमोर्वस्ना कुजं बुधः, कृष्णाष्टमी चतुदेश्यां न मृतस्य धितें धनात्