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विधानुशासन 959595959595
फिर मंत्रवादी उस मूर्ति की योनि प्रदेश को लाल रंग के धागे से बांध देवे तो तुरन्त ही उस स्त्री की योनि से भी रक्त निकलने लगे।
गरिक मर्याः शत्रोः प्रतिकृत्यायत्र तेन मंत्रेण, अंगे कीलं निखनेत् तत्स्यात्स व्याधि हीनां वा
॥ १९ ॥
गरिक (गेस) की बनी हुई शत्रु की मूर्ति के अंग में उपरोक्त मंत्र से जहाँ भी कील ठोके वही उसके रोग लग जाता है अथवा वह अंग ही कट पड़ता है।
पिचुमदं लवणा राजी गृह धूमैः प्रेत स्वप्परे लिखितं, नामौंकारोदरगं द्वारस्थं शत्रु ताप करं
॥ २० ॥
नीम (पीचुमर्द) लवणा राजी (राई) घर का घुमसा से स्मशान के खप्पर पर ॐकार के बीच में शत्रु का नाम लिखकर दरवाजे पर रखे तो शत्रु को ज्वर होगा।
देवदत्त
रेफस्य वज्र मध्ये साध्यं तद्वन्हि वायु पुरस्थं, उन्मत्त विष विलेख्यं पत्रे संताप कृत तप्तं
॥ २१ ॥
रेफ (रकार) के अन्दर यज्ञ के बीच में साध्य का नाम लिखे और उसके चारों तरफ अग्रि मंडल
और वायु मंडल उन्मत्त (धतूरे) के विष से (रस से) पत्र के ऊपर लिख कर अग्रि पर तपावे तो शत्रु को संताप होगा ।
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