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SSIOSD5050525 विधानुशासन 1505250150SOCIET मंगलवार बुधवार कृष्ण अष्टमी अथवा चतुर्दशी को मरे हुए पुरुष का यिता में से खून रुपी जल लेवे और असृज (खून) से लीपकर कपड़ों को भयानक बनाये।
याम्टदिक ज्वालिता दत्तान्निर्वाप्या सृजि निक्षिपेत्. अभ्यर्य तेज गंधायथतेन यथाविधि
॥७॥ दक्षिण दिशा की जलती हुई चित्ता को बुझाकर उससे रक्त निकाले फिर विधिपूर्वक संघ आदि से पूजन करे।
भूत द फलके नाम शत्रो स्तिथ्यो स्तयो लिरवेत्,
आश्रित्य दक्षिणा मूर्ति वलिदान पुरस्सरं ॥८॥ भूतदु (ल्हसेव) (वहेड़ा) के तख्ती पर दक्षिणा मूर्ति का बलिदान करके शत्रु का नाम तिथियों सहित लिखे।
उपेक्ष्याम जपेन्मंत्रं शत्रोः स्याहुस्सहो ज्वरः, माजनानाम वर्णानां स्वस्थ: स्यात्स दिने दिने
॥९॥ फिर उस तख्ती की उपेक्षा करके मंत्री उपरोक्त मंत्र को जपे तो शत्रु को अत्यन्त कठिन ज्वर हो जाएगा उस तस्ती पर से नाम के अक्षरों को मिटा देने से शत्रु दिन प्रतिदिन स्वस्थ होता जाएगा।
आलिरव्य वृश्चिके नोपोषित कक वाकु पक्षि दहनेन,
अंगुष्टंागुल प्रमाणं भूत वपुहं निबं काष्ट कृतं ॥१०॥ नीम की लकड़ी पर वृश्चिक (विछवा घास) से उपोषित (उपवास किये हुए) कृकयाकु (मोर) के पंखों को जला करके राख से आठ अंगुल लम्बा भूत का शरीर लिखकर उसमें साध्या का नाम लिखे।
तस्मिन साध्यस्य लिरवेदमिधानं सज्वरेण सहसैव,
पीडा स्तस्य नु शमनं नामाक्षरमार्जनं जनयेत् ॥११॥ तो उसको उसी समय ज्यर की पीड़ा हो जाए और उसके नाम के अक्षरों को मिटा देने से यह पीड़ा शांत हो जाती है।
यूकारि पिच्छेन कला तृतीयश्मशान वस्त्रे लिरिवतो नरेण, शवालयां गारक कानकाभ्यां ज्वरो करोत्टोव शवालयस्थः ॥१२॥
ರಥ5, 990 ಗಂಥದಿಂದ