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CISIODOSCISCIDED विद्यानुशासन MSCISISTEIDISCIEOS
नाम षष्टम स्वर स्यांत लिरवेत् प्रेतस्थ रवप्परैः, कांजिरा रुण निंबेन द्वारे संताप कद भवेत्
॥२२॥ नाम को छठे स्थर ॐ के मध्य में श्मशान के खप्पर पर लाल रंग की कांजी और नीम के रस से लिखकर दरवाजे पर रखने से संताप करनेवाला है।
ॐग्रह गृह याहि सुभगे ठः ठः॥
या पोरापत शकदै हुरिंद्रावग्रह, आवेशयति तज्जप्तो धूप आशात मात्रतः
॥२३॥ इस मंत्र को जपते हुएजो पारापत (कबूतर) की शकृद (बींट) और बाहुज (स्याचं उत्पन्म हुए तिल) इंद्रयव (इंद्रजो) की धूप को सूंघने मात्र से ही ग्रह आवेशित हो जाते हैं जग जाते हैं।
हेमास्थि मक्षिका चूर्ण पुणा चूर्ण वदो दनं,
पानं या ग्रह कत्यवस्थं गुह स्वारी निसेवनात् ॥२४॥ धतूरे की लकड़ी माक्षिक (सोनामारयी) का चूर्ण और पुणघूर्ण के स्याने य पीने तथा ग्रह का विकार गुड़ और खारी के सेयन करने से स्वस्थ कर देता है। SSIOSISTERISTOR5101512275७७३PISOKSIPISIOTI50151055815)