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CHRISIRIDICI501505 विधानुशासन 950150150150350
ऊद पारा पैर या मार्य राया गुई कुल्माष पत संयुक्तं धूप दीपादिमिश्रितं
॥२०॥
पात्रे निधाय सौवर्ण त्रिरावत्य बलिं क्रमात निक्षिपेत्सश्चिमायांतं दिशिं सायं समंत्रक
॥२१॥ पाँचवें मास में विकट जंधा नाम की देवी गर्भिमी को ग्रासित करती है। और उससमय उसको कष्ट भी बहुत अधिक होता है। १९ भात, खीर, पके हुए उड़द, गुड़, कुलथी, घी, धूप, दीपक आदि मिलाकर एक सोने के बर्तन में रखकर गर्भणी पर मंत्र को बोलते हुवे तीनबार उतारा करके पश्चिम दिशा में संध्या समय रख दें।
ॐ नमो भगवति विकट जये जूभिनी सर्वदुष्ट निवारणी ह्रीं ह्रीं क्रों को ऐहि ऐहि इमं बलिं गन्ह गृह स्वाहा ॥
स्नात्वा नूतन वस्त्राभ्यां परिधानोत्तरीय युक मुद्रालंकृत हस्तः सन् कुर्वतयं यथा विधि:
॥२२॥
एवं भूतः स्वयं मंत्री विधीयादिन सप्तक
बलिं शांति भवेत् तस्या मुनीनपि च भोजयेत् . |॥ २३॥ स्नान करके नई धोती और चादर पहनकर हाय में माला लिये हुये इस विधि को पूर्ण करें। मंत्री इस प्रकार बराबर सात दिन तक यह विधि करे तथा बलिं दें। तो विघ्न शांत होते है तथा मुनियों को भी भोजन करायें।
षणमासे गर्भिणी याति देवता दर धारिणी जाटाते विक्रिया तस्याः प्रतिकारं करोत्विते:
॥ २४॥
पंच वर्णयुतं भक्ष कसरं माष चूर्णक पक्काम फलं संयुक्तं धूप दीपादि शोभितं
॥२५॥
मात्ते पात्रे समादाय कदली पत्र शोभितं त्रिरावर्त्य बलिं पक्षात्पचिमायां दिशि क्षिपेत् ।
॥२६॥ गर्भिणी के पास छटे मास में दर धारिणी नाम की देवी आती है वह भी अपने विकार उत्पन्न करती है उसका प्रतिकार इस प्रकार करे । पाँच वर्ण को भोजन कृसर (तल चांवल मिले हुये) उड़द का चूर्ण पका हुआ आम और धूप दीपक सहित शोभित बलि को। मिट्टी के बर्तन में केले का पत्ता बिछाकर रखे और गर्भिणी पर मंत्र बोलते हुए तीन बार उतार कर इस बलि को पश्चिम दिशा में रखे। SASIRI5015ODRI50150 ४१९ DISPRIOTSD150501505