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आतं शिरिव शिखा मूलं भानु स्वर्भानु संगमे कंठे बद्धं कुमारस्य स्यात्सर्वग्रह दोष हृत्
॥ १२ ॥
मथुर
शिखा की मूल (जड़) को सूर्य और राहु के संगम अर्थात् सूर्यग्रहण के अवसर पर लाकर बालक के गले में बांधने से ग्रह के सभी दोष दूर होते हैं।
संधारणं सदा कुष्ट शंखो त्पल वचायसां कुमारस्यं भवेत्भूतग्रहसंभूति भीति हृत्
॥ १३ ॥
कूठ संख नीलोफर वच और लोहे के धारण करने से बालक के सभी दोषों का भय दूर होता है ।
दंता स्तदैव जाता वामा सेवा प्रथर्मोशिशोः भवति तत् कुलस्य व निखिलस्य विनाशिनः
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यदि बालक दांत निकले हुए पैदा हो और उसके पहले मास में दांत निकल आवे तो बालक सम्पूर्ण कुल को नष्ट कर देता है।
मासे जाता द्वितीये रिमन् कुमारस्याथ वा पितु नाशमा गामिनं दंता सूचयंति सुदुस्तरं
॥ १५ ॥
बालक के दूसरे मास में निकले हुए दांत पिता की अथवा बालक की अत्यंत शीघ्र नाश को प्राप्त होने की सूचित करते हैं।
तृतीय मासि जायंते यदि दंताः शिशों भवेत् पितामहस्य मातु र्यापितु वपिस्यस्य चा मृति
॥ १६॥
यदि बालक के तृतीय मास में दांत निकले तो पितामह (बाबा) माता या पिता या स्वयं अपनी (बालक) की ही मृत्यु हो ।
उत्पद्यते शिशोर्मासे च चतुर्थे रदना यदि
अग्रजस्य भवेन्मृत्यु भगिने यस्य वा तथा
॥ १७ ॥
यदि बालक को चौथे महिने में दांत निकले तो अपने से ऊपर ऊपर के बड़े भाई या भानजे की मृत्यु हो जाती है।
पंचमे मासि संजाता नाशयंति शिशो द्विजाः पित्रा युपार्जितान हस्ति तुरंगकरभादिकान्
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॥ १८ ॥
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