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959695959595 विधानुशासन 9595951969
दोषश्चांकचोक्तोयो यो दर्वीकरादि भुजगानां,
मिश्रेण तेनतेन व्यंतरमुरगं विजानीयात्
॥ १८ ॥
इसप्रकार दर्दीकर आदि नागों के दोष और चिन्ह हैं। जिनमें यह लक्षण मिले हुए हों उनको व्यंतर नाग जानना चाहिये।
सर्पा गर्भ मासेष्वाषाढा येषु त्रिषु क्रमाल्लब्ध्वा जनयंत्यंडानि बुहन्यथा त्रिमासेषु कार्तिका यें
॥ १९ ॥
सर्पिनियों के आषाढ़ आदि के महीनों में गर्भ हुआ करता है। इसके पश्चात् वह कार्तिक आदि तीन महीनों में बहुत से अंडे देती है।
स्फुटितानि तानि सत्यं थ तेषु स्त्रीपुंनपुंसकांडानि, शिष्टानिवर्जयित्वा त्रीण्यथं जीवंति तान्येव
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उन अंडों के फूटने पर उनमें से स्त्री-पुरूष तथा नपुंसक बच्चे होते हैं किन्तु उनमें से बाकियों को छोड़कर केवल तीन ही जिन्दा रहते हैं।
सप्ताहवसितोहिः स्यादुन्मीलित विलोचनः, आत्म प्रबोधनं तस्य द्वा दशा हात प्रजायते
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नाग के बच्चे की सात दिन पड़े रहने पर आंखें खुलती हैं और उनको अपने आपका ज्ञान बारहवें दिन होता है ।
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विशंतौ वासरे स्व स्थातीतेषु रदना अहे :, प्रादुर्भवंति द्वात्रिंशत्संख्याः सूर्यावलोकनात्
नाग के बच्चे की बीस दिन में सूर्य को देखने से बत्तीस दांत निकलते हैं।
॥ २२ ॥
दंतेषु द्वात्रिंशत्स विषा दष्ट्रांश्चतुस्त्र आख्यातो, द्वे भुजगंस्य कराली मकरी च दक्षिणे पार्श्वे
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नाग के उन बत्तीस दांतो में विष वाले चार ही दांत होते हैं- दाहिनी तरफ के दो दांत कराली और मकरी नाम से पुकारे जाते हैं।
अन्यत्र काल रात्रि यम दूती चा व्याया पार्श्वे, अध उर्द्ध मध इति तासां विद्यात् क्रमशः
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॥ २४ ॥