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CSCISODESRISO15 विधानुशासन ISIRISTOTHRIKRISODE
सं सिद्धो यस्य भेरुंडा मंत्रोटयं श्रवणां तरे, जप्तोर्दष्ट सन्यसतं निविषी कुरुतः नर
||७४।। जिसको उपरोक्त भेरुंडा मंत्र से सिद्ध होता है यह इस मंत्र को इंसे हुए के कान में सुनाकर पुरुष को विष रहित कर देता है।
धात्री समरिणां वर बीजाक्षर जापित सलिलि विन्यासः, अंगुलि चलनेन नरं निश्चल मपि घलयति स्वैडं ॥५॥
क्षिप स्वाहा धात्री (पृथ्वी) क्षि में समिरणा (वायु, अक्षर स्या) और अंबर (आकाश अक्षर) हा के बीजाक्षारों अर्यात क्षि स्वाहा इस मंत्र को जल पर पढकर उसमें अपनी उंगली चलाकर अंग न्यास करने से सर्प विष से निश्रेष्ट पुरुष भी अपनी इच्छानुसार गमन करता है।
भूजल मरुन्नमोक्षर मंत्रेण घटेंयु मंत्रितं कृत्या, पादादि विहित धारा निपादनाद भवति विष नाशः ॥७६॥
क्षिप स्वाहा भू पृथ्वी अक्षर क्षि और जल अक्षर प और नभ (आकाश) अक्षर स्वाहा इस मंत्र से घड़े के जल को मंत्रित करके उसकी धारा को सिर से लगाकर पैर तक डालने से विष का नाश होता है।
महीजल समीरणां वर मंत्रित सलिलेन सिक्त वदनोयः,
प्रगटयति वास मसौ जीयति खलु ने तरो दष्ट ||७७ ॥ मही (पृथ्वी) क्षर क्षि,जल (प) समीरणा (यायु) स्वा, अंबर (आखाश) हा ,अर्थात् 'क्षिप रवाहा मंत्र से मंत्रित जल से जिसका मुँह सींचा या धोया जाता है यह सांप के विष से मरा हुआ मूर्छित पुरुष भी तुरंत श्वास लेने लगता है ,और जी जाता है।
अभिमंत्रितं यद उदकं मणितैः फणिनां पुरा फण मणिभिः,
दष्ट स्यांगे से स्तैन कृतः सकल गरल हरः ॥ ७८ ॥ इस प्रकार उत्तम सो के प्राचीन मंत्रों से अभिमंत्रित जल से सोँ के डसे हुए पुरुष का मुख आदि धोने से सींचने से सबप्रकार के विष नष्ट हो जाते है।
फणि राजांष्टक मारूत गणनाक्षर जपित तोय धाराभिः, सितत हृदयः स दक्षो तिष्ठति तत्क्षण देव ॥७९ ॥
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