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3959595952 विधानुशासन 9595959595
त्रिफला शतावरी हा गंधा गोक्षुर विड़ालिका मूलैः,
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शिवया चूर्णितै धृते मिश्रः लीठैः क्षयो नश्येत् त्रिफला (हरड़े बहेड़ा आँवला) शतावरी हयगंधा (असगंध) कोखरु विड़ालीका (भूमि कुम्हड़ा विदारीकन्द) शिवा (छोटी हरड़े) के चूर्ण को घृत में मिलाकर चाटने से क्षय रोग नष्ट होता है ॥
अमृता विडंग रास्ना दारु वरा व्योष चूर्ण सम तुलितं, सहसा कासान सर्वानसिता रजः परि हरे लीठ
॥ ९५ ॥
अमृता ( गीलोय) बाय विड्ग रास्त्रा दारु (देवदारु) वरा (पाठ) वरा (त्रिफला हरड़े बहेड़ा आँमला) व्योष (सोंठ मिरच पीपल) के चूर्ण को शक्कर के साथ चाटने से सब प्रकार की खांसी को बराबर मात्रा में लेने से नष्ट करता है।
कुनटी कटु याभ्यां तुल्याभ्यां मक्र्क दुग्धपिष्टाभ्यां, रचितां गुलिका कासानहि नस्ति धूमोपयोगेने
॥ ९६ ॥
मेनसिल कटुत्रय (सोंठ मिरच पीपल) को बराबर लेकर आक के दूध में पीसकर गोली बनावे | इसकी धुंआ पीने से खाँसी दूर होती है।
बदरी दल हरिताल व्योष शिलास्ते करंज रस, पिष्ट: गुलकीकृतानि हन्युःकास रूंज धूम पानेन
बेर के पत्ते हड़ताल व्योष (सोंठ मिरच पीपल) शिला (मेनसिल) को करंज के बनाई हुयी गोली के धुंये से खांसी दूर होती है।
गोपी कणा शिलाभिः पिष्टाभिः वर्तये कृताः, का हन्युधूम निपाना द्विश्व शिलाभ्यां तथा रचितं
॥ ९८ ॥
गोपी (श्यामलता) कणा (पीपल) शिला (मेनसिल) को पीसकर तथा मेनसिल और सोंठ की गोली की बनाई हुयी बत्ती के धुंए को पीने से खांसी दूर होती है।
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ॐ किन्नर किं पुरुष गरुड़ गंधर्व यक्ष राक्षस निश्वासोपद्रवं हर पितृ पिशाचाय ठः
॥ ९७ ॥
रस में पीसकर
रौद्रेण सहस्त्र जपात्सिद्धेनानेन वेष्टितं सहसा, वज्रं सारख्यं भूपुर मध्य स्थं स्वाशद्भवति
॥ ९९ ॥
एक हजार जप से सिद्ध किये हुए रौद्र मंत्र से पृथ्वी मंडल के बीच में वज्र को घेरने से श्वास दूर हो जाता है !
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