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त्रि सहस्त्र जपात्सिद्धो मंत्रो दुग्गादि दैवतः,
असौ ध्यानादिना कुन्नेित्र कील विलोपनं ॥१२३॥ यह दुर्गा देवता का मंत्र तीन हजार जप से सिद्ध होता है। इसका ध्यान आदि करने से यह आंखों की कील (फला) को खो देता है।
अप हरति नयन पुष्पं करंज बीजेन निर्मिता यटिका,
द्विज वृक्ष कुसुम निर्यासमिता सप्त रात्रिका ॥१२४ ।। करंज के बीजों को पीसकर द्विज वृक्ष के फूलों के रस (द्विज वृक्ष - ब्रह्म वृक्ष पलाश) (द्विज वृक्ष:स्परःकी देक बाई सत्ती को आंखों में रस को लगाने से आंख का फूला सात रोज में नष्ट होता है।
नक्तांध्याप्नो दृगाक्तः स्टात् स कृष्णारगो सकृद्रसोः,
द्रोण पुष्पी दलांभो वा मिश्रितं तिल वंयुभिः ॥१२५॥ कृष्णा (काली मिरच) गोसकृत (गोबर) के रस को आंख में लगावे अथवा द्रोणपुष्पी (गोमा) के पत्तों के रस को तिल यधु ( ) के साथ मिलाकर आंखो में लगाने से रतौंधी मिटती है।
हरितालं वचा कुष्टं चूर्ण पीत वटच्छदं अपि पिटवा,
मुरवेलिंपेदयंग लापन लोलुपः ॥१२६ ॥ हरताल वच कूठ और बड़ के पीले पत्तों को पीसकर मुख पर लेप करने से व्यंग (मुहासे) दूर होतेहैं।
इंट्न वल्ली दलैर्लेपः संपूर्ण व्यांग नाशनः स्यान्मनः,
शिलया द्वा मातुलिंगांबु पिष्टया ॥१२७॥ इन्द्र वल्ली (इंद्रायण) के पत्तो का पूरा लेप अथवा मातुलिंम (बिजोरा) के रस में पिसी हुयी मेनसिल के लेप से व्यंग नष्ट होता है।
लेपात् कृष्ण तिल श्वेत राजिक्षीर द्विजीरकैः, सक्षीरया विशालाया स्त्वचा वा व्यंग नाशिनी
॥१२८॥ काले तिल सफेद सरसौं दूध दोनाजी रे क्षीरया (काकोली) विशाला(इंद्रायण) त्वचा (तज दालचीनी) के लेप से व्यंग नष्ट होता है।
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