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PSPSPSPSPSS विधानुशासन
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श्येदपिटिका तैल पटुग्रा वाजि विद्रुमैः, इंद्र लुप्तो यथा लुप्तो लांगलि शिफया महुः ॥ ११२ ॥ पटु (पटोल लता) उद्या (वच) वाजि (असगंध) विद्रुम (मूंगा) से उत्पटिका रोग नष्ट होता है और लांगली (कलिहारी) की जड़ के लेप से इंद्र लुप्त रोग नष्ट होता है । (इंद्र लुप्त रोग में रोम बाल नहीं उगते हैं)
मधुकोत्पल तृण गोपी वृहती मूलाहि केशरैः पिष्टैः पासा जेन विलेपः केशानां स्थापनो जननः
॥ ११३ ॥
मधुक (महवा) उत्पल (नीलोफर) तृण (डाभ) गोपी (गोपी चंदन) वृहती ( केटली) की जड़ अहिकेशर (नाग केशर) को बकरी के दूध में पीसकर लेप करने से गंज रोग मिटता है और बाल निकल आते हैं।
ॐ वज्र राज कामेश्वरी राज अमुकंशाधि हुं फट ठः ठः ॥
मदीरीत्र भिदं सिद्धं शिरो रोग हरं रहः, त्रिसहस्तस्त्र प्रजापात् स्यात् सिद्धिदां मंत्र वादिनां
॥
११४ ॥
यह मंत्र मंत्रवादियों को सिद्ध होता है, तीन हजार बार जप करने से सिर के रोग नष्ट होते हैं।
चतुश्शूल समाक्रातं विलिरखेदिंदु मंडलं. तेन्मध्ये तारमन्येषु कोष्टेष्वाप्तमथाष्टसु
दृश्य मानमिदं चक्रं चिंत्य मानमिवा मृतं, शिरो रोगविशेषाणामशेषाणां निवर्हणं
॥ ११६ ॥
चार शूलों से घिरे हुए चंद्र मंडल को लिखे उसके बीच में तार (ॐ) और शेष आठों कोठों में हैं लिखे। इस यंत्र को देखकर इसका अमृत के समान ध्यान करने से सब सिर के रोग नष्ट होते हैं।
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॥ ११५ ॥
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