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959595951955 विद्यानुशासन 2595
अरिष्ट वलककोदभूतः रस रसोनसियोजितः अपि वासुकिना मुत्थापयति मानवं
॥ २५ ॥
नीम की छाल के रस में लहसून मिलाकर सेवन करने से वासुकि नाग से हँसा हुआ पुरुष भी उठ जाता है।
पींत वासर कृत्पत्र स्वरसेन सहिं गुजा नानात्सद्य उत्तिष्टे दृष्टोप्टा हि भिरष्टभिः
॥ २६ ॥
वासा (अडूसा) के पत्तों का रस पीने और हींग के साथ सूंघने से आठ प्रकार के सर्पों से काटा हुआ पुरुष भी उठ जाता है।
नस्यं कुष्टो गंधाभ्यां दष्टानां सर्पिषाकृतं विषं हरति य द्वातौ निपीतौ मूत्र पेषितौ
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कूठ उग्रगंधा (वच या अजवाइयन या न कछिकनी या लहसुन) को घी के साथ मिलाकर सूंघने से विष नष्ट हो जाता है अथवा मूत्र में पीसकर पीने से भी विष नष्ट होता है ।
लवणोपेतनाग्रिक पत्रस्य रसेन भावनं दत्तं जयति विष भुजंगानां लसुनो पेतेन वातेन
॥ २८ ॥
चित्रक के पत्तों के रस की भावना नमक में देकर पीने से अथवा उसको लहसून के साथ मिलाकर सूंघने से भी सर्पों का विष नष्ट होता है।
मंदार दलस्य रसौ नसि कर्णे चार्पितौ पिनिहंति विषं, द्विरसन शतपद वृश्चिक जनितं द्विज मूर्द्धवाश्चरजः
॥ २९ ॥
मंदार (आक) के पत्तों के रस को नाक और कान में डालने से द्वि रसना (दो जीभ वाला) सर्प कनछला बिच्छू का विष नष्ट होता है ।
मधुसारं शैरीषं कुष्ट युतं वर्त्तित धृतेनालं दंष्टानाम, उद्धिष्टं नस्य मिदं निर्विशेष विष हरणं
॥ ३० ॥
मधुसार (महुवे का रस ) शैरीषं (सिरस) कूट सहित घृत में मिलाकर बनायी हुयी बत्ती को सुंघाने से सभी विष नष्ट हो जाते है।
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