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STOTRASIRISTOTRADI5 विधामुशासन ISIOSDI505505505 पर्पट (हवन पापडे) के क्लक के लेप से मिलाये से उतान दुरी खान और मुजन्न जात होती है।
प्रवालक्षीर वृक्षोत्यैः कुसुमैः कुकुंमस्य च , अंजनेन यष्टया च लेपो रूष्क विसर्पजित
।। २१२॥ प्रयाल (मूंगे) दीर वृक्षर (दूध के वृक्ष) के फूल कुंकुम और मुलहटी के अंजन और लेप करने से भिलावे का विष दूर होता है।
रंभामधुकत क्षीरी प्रवालप्रार्थवाजुनेः,
स गोक्षीरः आलेपनं शमयेत भलातक संभवं शोफंः ॥२१३॥ रंभा( केले) मधुकृत)महुये के फल) का दूध मूंगा प्रार्थवा और अर्जुन का गाय के दूध के साथ लेप करने से भिलावे से पैदा हुई सूजन शांत हो जाती है।
कल्कि कताणि सलिला सलिलै रवलंपति,
क्षणादेवेशति तेरे: परिपीता सकलं सणा बीज चूर्णे विषं ॥२१४॥ जल में कल्क बनाई हुई सलिला अत्यंत ठण्डे जल के साथ पी जाने से सणा के बीजों के चूर्ण के विष को क्षण मात्र में नष्ट करती है।
कटुका लावोः शुंठी पुनर्नवा याचपहति विक्रितं,
कोशातक्यो स्तवब्दः सुमनो दाल्या स्तुशशि वल्ली ॥२१५॥ सोंठ पुर्ननवा अब्द (नागरमोथा) सुमना (पूति करज) दाल्या (देवदाली बेल) और शशी यल्ली (सोमलता) कड़वी तुंबी और कड़वी तोरु के यकार को नष्ट करती है।
जीमूत स्टक्ष्याकोः सुरदाल्यावापि वदिर.
स्वारी नवभूत कपालमथवा सहजबुवल्कलं पथ्यं ॥२१६॥ जीमूत (नागरमोथा) ईक्ष्याकु (तुम्बी) सुरदाली (देवदाली) भी और विकारों में वदिर (बोर) खारी नमक नयभूत कपाल अथवा जामुन का वल्कल पथ्य है।
दंति द्रवंति संभूतैः वैकते विहिताहिता, जंबु यष्टा रिमेदाश्च रंभायाः कुसुमं तथा
||२१७॥
||२१८॥
दंतिनि स् सूत्रयोः पानाधौ विकारः प्रजायते,
तस्या रिमेदत्वक सेव्या सट:शांति विधायिनी ಎದುರಲು ಆgg Bಥಣಬಣಣಗಾಗದೆ