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विद्यानुशासन 959595955
अकोल तिलक दाडिम तिल जंबू मूल तुल्य भागाभ्यां
गुलिकां सिता मधुभ्यां कृताऽलि विष संक्रमं कुरुते ॥५४॥
अंकोल (ठेरा) तिलक दाडिम (अनार) तिल जामुन की जड़ सब बराबर लेकर शक्कर और मधु (शहद) मिलाकर बनाई हुयी गोली भरे के विष को बदलती है।
गोली रवि शलभ कृत कुली रसलभान दुग्ध रक्तानां कुंसुभाल शिला नामऽलि विष संक्रामकद गुलिका ॥ ५५ ॥ गोली बनायी हुयी आक (रवि) शलभ (तीडी) कृतक (रसोत) कुली रवि सलभान ( काकड़ा सिंगी) दुग्ध (दूध) रक्ता (चिरमठी) कुसुभा (केसूला) अल (हरताल ) शिला (मेनसिल) की गोली भौर के विष का संक्रामन करती है।
श्लेष्मांतक फलांकडबु छत्रं द्विप मलोद्भवं करोति विष संक्रामं वृश्चिक स्टान शंसय
॥५६॥
श्लेष्मांतक ( लिसोडे) के फल और आक का दूध छत्र (छितोना) द्विप (हाथी) की लीद का रस बिच्छू का निस्संदेह संक्रमन कर ती है ।
द्विप मल भूतं रवि दुग्धं श्लेष्म तरु फलोपेतं वृश्चिक ष संक्रमणं वदरीं तरु दंड संयोगात्
॥ ५७ ॥
द्विपल (हाथी की लीद) का रस भूतं (नागरमोथा) छत्र (छितोना) रवि दुग्ध (आक का दूध) श्लेष्म तरू फल ( लिसोड़े के पेड़ का फल) वदरी तरूं दंड (बेर के वृक्ष के दंड) के संयोग से बिच्छू के विष का संक्रमन होता है ।
दंशस्याऽयोनीता वृश्चिकजं विष मरणं सुरस शिफा शमयत्यु परिनुनीता सा सहसा तत् व्यर्थी कुरुते
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सुरस शिफा (निगुंडी की जड़) को काटे हुए स्थान से नीचे रखने से बिच्छु का विष शांत होता है किन्तु उसको ऊपर ले जाने से वह विष नाशन व्यर्थ हो जाता है अर्थात् विष ऊपर चढने लगता है ।
इति वृश्चिक विषं
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250305/७०१P/59/5251 でらでらです