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SISO151015105015015 विधानुशासन ISIOIST051015DECISI सफेदगिरि कर्णिका (सफेद कोयल) की जड़ को पानी से पीसकर बनाई हुयी बत्ती को सूंघने से इसे हुये का विष नष्ट हो जाता है।
व्योषेण टंकेणेनाथ लिप्तां वर्ति निवेशयत नुद्दक्षिणे स्त्रिया वामे घाणे भवति निर्विषः
॥३८॥ टंकण (सुहागा) और व्योष (सोंठ, मिरच, पीपल) की बनाई हुयी बत्ती को पुरुष के दाहिने और त्रियों के नाक के बारे में स्वर में रखने से विष दूर हो जाता है।
व्योष रसोनलं बाजीमूत सवर्णकारवेल्व रसे:, समारंभ सापिता सौपी: केशरास्थि हिंगु वचाः
॥३९॥
द्विगुणी भूतं यावदभवयतावत् पुनः पुस्तेषां, तचूर्ण विष हननं नालस्यं गंध मात्रेण
॥४०॥ व्योष, (सोंठ. मिरच, पीपल) के रस की अनल (चित्रक) बाजीभूत (घोड़े का मूत) सुवर्ण (धतूरा) कारवेल्व (करेला) का रस कारंज (करंज) सर्पगंधा, सिरस, केसर की लकड़ी, हिंग बचको तब तक भावना देता रहे जब तक यह दुगुनी न हो जाय। उसके चूर्ण की नाक में गंध भी जाने से विष नष्ट हो जाता है।
अति तरूण कनक फल जल चिर भावित जलवेत रसकल संकलितं तैलं करतल मृदितं न सि दत्तं सकल गरल हां
॥४१॥ अत्यंत पके हुये धतूरे के फल के जल की येत वृक्ष को बहुत दिनों तक भावना देकर सबको इकट्ठा करके हाथों से मलकर तेल निकाले। इस तेल को हाथों पर मलकर सुंघाने से सब प्रकार के विष नष्ट होते हैं।
नस्यं सिरिषापामार्ग बीजा सिधुदभवैः कृतं अथवा यव पाठाभ्यां विष सुप्त प्रबोधनं
॥४२॥ सिरस,सैंधा नमक, अपामार्ग (चिरचिटा) के बीजों को सूंघने अथवा जौ और पाठालता को सूंघने से विष से सोया हुआ जग जाता है।
॥४३॥
माधूक शतसः सारो द्रोण पुष्पी दलांबुभिः
भावितो नसि विन्यस्तो विष सुप्तान् प्रबोधयेत् CASIOTICISIRISRISTOTEIOD[६८४ PISOR512550150TSIDISION