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CHOT5101510505125 विधानुशासन P501519551015IDOS
बारहवाँ समुदेश
ॐ नमः सिद्धेभ्यः
अथातः संप्रवक्ष्यामि मंडल्यादि विषं प्रतिचिकित्सितं समुदिष्टं मंत्र तंत्र विशारदः
॥ १ ॥
मंडलि राजिल वृश्चिक मूषिक लूताश्च गर्द्धभादि भवं ।
नरव दंत क्षत जातं कृत्रिम स्थावर चरोत्थितं विषं विषम ॥२॥ अब मंडलिक आदि के विष की चिकित्सा मंत्र तंत्रों के पंडितो के मतानुसार कही जाएगी। मंडली (कुंडली से बैठनेवाला) राजिल (रखवाला सर्प) बिच्छु चूहा लूता घोड़ा और गधे केनाखून की चोट या काटने से उत्पन्न हुये स्वाभाविक और कृत्रम स्थावर और जंगम विषम विष को
कपूर कांजिकादिक विरुद्ध समभेदनोद्भवं च विष
यत्तस्य चिकित्सित मिदमिह वक्ष्येहं मंत्र तंत्राभ्यां ॥३॥ अथवा कपूर और कांजी के परस्पर विरूद्ध मेल से उत्पन्न हुये सबप्रकार के विषों की चिकित्सा का वर्णन मंत्र और तंत्रों से किया जाएगा।
कूटः सहाजितः पूज्य नित्यौ युक्तौ स विंदुना विभुना संयुतो भूतं तुरीयं विंदु संयुतं
॥४॥ कूटक्ष के सहित अजित इ को सदा विंदु अनुस्वार सहितायुक्त) करके विंदु सहित चौथे भूत स्वा को विभु (हा) से युक्त करके पूज्य त नित्य प विभु ए
गारूडोयं महामंत्रः सर्वमंडली ना विषं हो
जपायैरित्या हं परमः श्रुत केवली । क्षि स्वाहा यह गरूड़ महामंत्र है इसका जप करने से सब मंडलियों का विष नष्ट हो जाता है ऐसा परम श्रुत केवली भगवान ने कहा है।
ॐहां ही अल्प पक्षि देह अमर विमर विमन पां क ठाठः ।।
अमु मंत्र जपन्मंत्री कुर्व स्तांबूल भक्षणं मंडली क्ष्वेवमरिवलमलं शमयितुं क्षणात्