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525DISCISIO505 विधानुशासन PISO15015105009015
स्नूहीक्षीरेगव्येषु च रूबु चंदन कल्क संयुतं
सिद्धं सर्पि पीतं शमयति मंडलि विष विकियामाशु ॥१३॥ स्नूही (योहर) का दूध पंच गव्य रुयु (इरंड) और लाल चन्दन के क्लक में सिद्ध किया हुआ धृत को पीने से शीघ्र मंडली सर्प के विष का विकार नष्ट होता है।
अस्थि वकुलस्य पिष्टं अंड्वलक दुग्धेन नाशयते दत्तं
प्रशमयति मंतु मोहं मंडलि विष वेग संजातं ॥१४॥ मोलश्री की गुठली को खूब बारीक पीसकर श्रृखलक (ऊंटनी) के दूध के साथ मंड्खु (शीघ्र) देने से मंडली के विष के वेग से उत्पन्न हुआ मोह शीघ्र नष्ट हो जाता है।
आदी मंडलि विष जित् रजनी नवनीत लोद्र चूर्णानां
आलेपनमाथ पान लवणास्थ लेभल पाय९५॥ आदि में विष को जीतने वाली हल्दी(रजनी)और नवनीत (मक्खन) और लौंग के चूर्ण कालेप करके फिर नमक पिलाना चाहिये और फिर लेप करना चाहिये।
नालिकेरोद्भव तैलं सिंधुद्भवसमायुतं मंडलिक्ष्वेल हप्रोक्तं दत्तं लेपन कर्मणि
॥१६॥ लेप के कर्म में नारियल का तेल और सिंधुद्भव(सेंधा नमक) को मंडली के विष को नष्ट करने वाला कहा है।
मंडलिना दष्टस्य स्याद्य यदि विण मूत्र संस्तंभः
नाभेरटा: स तंदुल अज जल्या वष विष्टया लिंपेत् ॥१७॥ मंडली आदि के इंसे हुए पुरूष की जो विष्टा और मूत्र बन्द हो जाता है उसके लिये नाभि के नीचे तंदुल (चावल) आज जल (बकरी का पेशाब) वृष (वृषभक) बैल को विष्ठा का लेप करे।
पिंडार पत्रिकायाः शीतांभः कल्कितेन कंदेन
कुक्षि लिंपेत मंडलि विषेण विण मूत्र सं स्तंभ: ॥१८॥ अथवा मंडली के विष से मल और मूत्र बन्द होने पर चिरचिटा और जावित्री के कंद का टण्डे जल से बनाये हुए कल्क का कोख में लेप करे।
सुरदारू स महिषी सकदा लिप्तं सोफंदंश
मप हरति मंडलि विष संजातं महिषी मूत्रेण संपिष्टः ॥१९॥ . SOSORR5RISTRISRTSARIS[६९४ PECISIOSCISIOTSIDDRIST