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15251 विधानुशास 9595910955
परेशान मन से, बेमन की इच्छा से भोजन करने वाला, इसे हुए पुरुष की मलिन बुद्धि कमलों की सुगंध से तथा क्षीर सागर के दूध से ध्वजा के समान उज्जवल होने लगती है। उसका शरीर निर्मल होने लगता है । इस प्रकार कथाओं से उसके विष का वेग कम होने लगता है उसको देखकर उसकी आंखो और कान में यह कहकर उठावे कि मेरी रक्षा करने से तुम्हारा विष दूर हो गया है।
ॐ ह्रीं रुद्राय किरात रूपिणे विष वंद्योसि मुदितो सि कीलितोसि तिष्ठ तिष्ठ माचल माचल सभी समी समीर समीर समाणा समाणा ठः ठः ॥
शबर निहितोसि करिणो मरणं कथयन्न नेन मंत्रेणा,
विष वेग मपा कुर्त्या कुलिक स्वाप्या श्रु मंत्रज्ञैः ॥ ११३ ॥ तुमको भील ने उठा रखा है इस प्रकार कान में उसके मरण को कहता हुआ इस मंत्र से कुलिंग नाग के विष को नष्ट करे ऐसा इस मंत्र के जानने वालों ने कहा है।
ज्वरबाल ग्रह शांति स्तोभन सं स्तंभ संक्रमा दीनि, आ क्रीडनादि मंत्र: किरात रूद्रीय मावहति
॥ ११४ ॥
यह रूद्र किरात् मंत्र ज्वर और बालकों के ग्रहों को शांत करता हुआ विष का स्तोभन और स्तंभन करके नाग को खिलाता है।
सिद्धीनियुत जपेन धूतादि क्रीडटौष हरति विषं,
आचमन या चनाद्वा पायस भुक्तवाथवा मंत्रः
॥ ११५ ॥
यह मंत्र एक लाख जप से सिद्ध होता है। इसकी सिद्धि के समय में खीर का भोजन करना चाहिये। यह आचमन करके पढ़ने और जुआँ खेलने के काम आता है तथा विष को नष्ट करता है।
तन्मांस रूधिर मज्जास्थि धातु प्राणागतं निवर्त्तय, विषमनेक क्रीडनकरः सर्वकर्म कर
॥ ११६ ॥
उसके मंस, खून, चरबी, हड्डियों और धातुओं तथा प्राणों में गया हुआ विष भी नष्ट हो जाता है । तथा वह कई प्रकार की क्रीडा करता है। तथा सब काम करता है।
ॐ रुद्र तिष्ट-तिष्ठ चिटि- चिटि ठःठः ॥
अनमंत्रित वारिभिः कृत्वा सत्सेचन क्रियां, औषधैर्या प्रलेयादि विसर्धक विसर्पनुत्
॥ ११७ ॥
इस मंत्र से अभिमंत्रित जल डालने या सींचने की क्रिया से या औषधि आदि का मंत्र लेप करने से सर्प का विष नष्ट हो जाता है।
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