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धृवद्धि चंद्र मुद्रा दक्षिण भागोऽहि दंशिन स्थित्वा वदति तय गौ दान कर लोकल नीतेति
धृत्वा धारयित्वा कं अर्द्ध चंद्र मुद्रां अर्द्धचंद्राकारा वाम करांगुष्ट तर्जनीभ्यां
धृतमुद्रां क्र दक्षिण भागे दक्षिण दिग्भावो कस्या अहि दंशिनः सर्प दष्ट पुरुषस्य तवादियागौ स्थित्वा वदतु भाषतु
इदानीं सांप्रतं तस्कर लोकेन दस्य जनेन नीतेति गृहीत्या नतिति वदतु
इसके पश्चात् मंत्री सर्प दष्ट पुरुष के दाहिनी तरफ बैठकर बांये हाथ के से अर्द्धचन्द्राकार मुद्रा बनाकर कहे तब गौरी दानी तस्कर लोकेन नीता अभी अभी चोर ले गये हैं ।
तं समान्य पादेन या ही त्युक्ते स धावति उच्छापयति तं शीघ्रं मंत्र सामर्थ्य मीद्धशाम
तं समान्य पादेन तं दष्ट पुरुषं मंत्रिणा स्व पादेना हन्यात् याहीत्युक्तेन
गच्छ गच्छे त्युक्ते स धावति सदष्ट पुरुष धावनं करोति उच्छापद्यति तं शीघ्रं तं दष्ट पुरुषं तित्यु स्थापयति मंत्र सामर्थ्य मीद्धशां
भगवत्या मंत्र माहात्म्य मेव विधं क्रोश पट हा त्रानेन दष्टो स्थापन विधान
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॥ १९७ ॥
॥ १९८ ॥
॥ १९९ ॥
अंगूठे और तर्जनी अंगुली अर्थात् तेरी गौर को
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फिर उस दष्ट पुरुष को पेट से मार कर कहे जा भाग जा इस मंत्र की सामर्थ्य एसी है कि वह सुनते ही भागने लगता है।
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