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________________ 9596959 M52/5 fangeneno Y50505252525 धृवद्धि चंद्र मुद्रा दक्षिण भागोऽहि दंशिन स्थित्वा वदति तय गौ दान कर लोकल नीतेति धृत्वा धारयित्वा कं अर्द्ध चंद्र मुद्रां अर्द्धचंद्राकारा वाम करांगुष्ट तर्जनीभ्यां धृतमुद्रां क्र दक्षिण भागे दक्षिण दिग्भावो कस्या अहि दंशिनः सर्प दष्ट पुरुषस्य तवादियागौ स्थित्वा वदतु भाषतु इदानीं सांप्रतं तस्कर लोकेन दस्य जनेन नीतेति गृहीत्या नतिति वदतु इसके पश्चात् मंत्री सर्प दष्ट पुरुष के दाहिनी तरफ बैठकर बांये हाथ के से अर्द्धचन्द्राकार मुद्रा बनाकर कहे तब गौरी दानी तस्कर लोकेन नीता अभी अभी चोर ले गये हैं । तं समान्य पादेन या ही त्युक्ते स धावति उच्छापयति तं शीघ्रं मंत्र सामर्थ्य मीद्धशाम तं समान्य पादेन तं दष्ट पुरुषं मंत्रिणा स्व पादेना हन्यात् याहीत्युक्तेन गच्छ गच्छे त्युक्ते स धावति सदष्ट पुरुष धावनं करोति उच्छापद्यति तं शीघ्रं तं दष्ट पुरुषं तित्यु स्थापयति मंत्र सामर्थ्य मीद्धशां भगवत्या मंत्र माहात्म्य मेव विधं क्रोश पट हा त्रानेन दष्टो स्थापन विधान ॥ १९६ ॥ ॥ १९७ ॥ ॥ १९८ ॥ ॥ १९९ ॥ अंगूठे और तर्जनी अंगुली अर्थात् तेरी गौर को ॥ २०० ॥ ॥ २०१ ॥ ॥ २०२ ॥ ॥ २०३ ॥ फिर उस दष्ट पुरुष को पेट से मार कर कहे जा भाग जा इस मंत्र की सामर्थ्य एसी है कि वह सुनते ही भागने लगता है। 96969595969595 ६६२ 95959595959
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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