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तुंबी में जरा देर रखी हुयी पाखंडी फल के जल को घृत के साथ पीने से तुरन्त ही विष नष्ट हो जाता है।
अर्क मूल त्वचा चूर्ण पीतः शीतेनं वारिणा, सर्प घोणस धतुर करवीर विषापह
आक की जड़ के छाल के चूर्ण को ठंडे जल के साथ पीने से सर्प गोहरा धतुरा और कनेर का विष नष्ट हो जाता है।
वंध्या निर्गुडिका द्वंद्ववेग सूर्येषु पुंविकाः, निहंतुत्सर्पिषा पीताः फणि कटिजं विषं
॥ ७ ॥
॥८॥
हँसा हुआ पुरुष मृत के साथ संध्या (बांस ककोड़े । निर्गुडी (संभालू) साधारण तथी नीली दोनों वेग (महाकाल का फल) (मालकांगनी) सूर्ये (आक के पत्ते) पुंखिका (सरफोका) को पीने से सर्प और कीड़ो का विष नष्ट होता है।
आज्या निर्गुडीका श्वेत वचया चार विषो पिबेत्, मूलं वा सिदुंवारस्य तस्य पत्रं स्व भावितं
॥ ९ ॥
घृत और निर्गुडी श्वेत वचचार (चिंरोजी ) को विष में पीचे अथवा (सिंदुवार) निंगुडी को निर्गुडी के पत्तों के स्वरस की भावना दी हुयी जड़ को पीवे ।
तदुलीय अर्क मूलं रूक गृहधूमो निशाद्वयं, पीतेघृतेन दना च पीतैर्नस्याद्विषादभयं
॥ १० ॥
तंदुली (शंखनि-वाय विडग ) आक की जड़ की रूक () गृह धूम (घर का धूमसा ) दोनों हल्दी ७ हल्दी और दारू हल्दी को घृत तथा दही के साथ पीने से विष का भय नष्ट होता है।
रजनी द्वयं गृह धूमं समूल पत्रं तु तंदुलीयं वा, दधि गुड सहितं सर्वं व्यंतर विषनाशन भणितं
॥ ११॥
दोनों हल्दी घर का धूमसा और बाय विडंग को जड़ और पत्तों सहित लेकर दही और गुड़ मिलाकर लेने से सब प्रकार के व्यंतर नागों का विष नष्ट करने वाला कहा गया है।
लवणार्द्ध पलोपेतश्चिचां पल्लवजो रसः, कुडव प्रमितः पीतो विषं हंति फणामृतां
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॥ १२ ॥