________________
HELI
CHOROSCORRES विद्यानुशासन NSTRIEPISPRISESIRSS
ग्यारहवां समुदेश ॐ नमः सिद्धेभ्यः
अथांतः सं प्रवक्ष्यामि फणिदष्ट चिकित्सितं, औषधेरैव विद्यौः सिद्धै रदभुत शक्तिभिः ।
॥१॥ इसके पश्चात् अनेक प्रकार की अद्भुत शक्तिवाली औषधियों से सर्प के काटे हुये की चिकित्सा का वर्णन किया जाएगा।
इह पान भक्ष्यनस्यां जन धूपा लेप सर्वकर्मकरं, क्ष्वेडोपद्रव हरणं दष्टा चरणं च वक्ष्यामि
॥२॥ इस संबंध में ऐसी पीने और खाने की औषधियों अंजन, धूप और लेपों का वर्णन किया जाएगा जो सब कार्य करने वाले और विष के उपद्रव को नष्ट करने वाले हैं। और सर्प से इँसे हुवे के आचरणों का भी वर्णन किया जाएगा।
सर्पिषं क्षुद्र व द्वद्धं सह तीक्ष्ण फल द्वट, पीतं भुजंग दष्टस्य ह्रदयावरणं मतं
॥३॥ धृत में दोनों प्रकार के वांदा और दोनों तीक्ष्ण फल (तीक्ष्ण= विष) को पानी से इंसे हुए को पिलाने से हृदय हल्का हो जाता है।
अहि दशानामादौ जीव त्राणाय गोमय सरसः, यत युक्तः पातव्यं कटु मरिचो पेत माज्यं च
॥४॥ सर्प के इंसे हुए के शुरू में उसका जीवन बचाने के वास्ते गोबर का रस घी मिला हुआ पिलावे तथा काली मिरच मिला हुआ धृत पिलाना चाहिये।
गुड लवण कांजिकानां पानाद भुजंगेन दष्ट गात्रस्या,
उपशममुपद्यति विषंक्षण मात्रादकण स्याथ गुड़ नमक और कांजी को बराबर बराबर लेकर पिलाने से सर्प के काटे हुए के शरीर का विष क्षण मात्र में सुहागे के साथ देने से नष्ट हो जाता है।
पारवंडिफल तोयं तुंबी सं स्थितं क्षण निहितं, पत युत मेतत् पाना द्विष हरणं सपदि दष्टाना
॥६॥ S5DISCISIOISTRISTOTSIT51६७८ PISTRISADISISTSTOISSISTS