________________
CASIO1505RIDDISTRIS विधानुशासन NSCISIODICISITORSCIEN
आध्यंते भू बीजं मध्ये जल वह्नि मारूतं योज्य,
स्तंभय युगलं स्तंभो वाम करों गुष्ट चालनंत: ॥५५॥ क्षिपॐ स्वा स्तंभय स्तंभय क्षि इस मंत्र का बायें हाथ के अंगूठे से जपने से विष का स्तंभन होता है।
व्योम जल वह्नि पवन क्षिति युत मंत्राद् भवत्य यावेशः,
स क्षि पहा पक्षि पहः पवनेन कनिष्ट का चालनात ॥५६॥ हा पॐ स्वा क्षि संक्षि पहा हा पक्षि पहः ॥ हा पॐ स्वाक्षि संक्षिप हा पक्षि पहः इस मंत्र को बायें हाथ की कनिष्टा उंगली से जपकर चलाने से पुरुष के शरीर में नाग आयेश करता है।
मुरदग्नि वारिधात्री व्योम पदं संक्रम व्रज द्वितयं, चालितयोऽनाभिकथा नितरां विष संक्रमोभवति
॥५७॥ स्वा ॐ पक्षि हां संक्रम-संक्रम वा गज्वल उतार-बारमिजद-विजय अनंत ॐठ::॥ इस मंत्र को अनामिका से जपकर चलाने से विष का संक्रमण होता है।
शोषा दीना मयं यंत्रो नियत त्रय जापतः सिद्भेदे,
तेन शेषादीनाम युक्तेन मंत्र वित् ॥५८॥ शेषादि नामवाला मंत्र तीन नियुत (तीस लाख) जाप से सिद्ध होता है। उसे मंत्री का नाम सहित सिद्ध करे.
पाद जंघा मेठर नाभि हत् कंठ मुख मस्तकं,
क्रमेणयोजितं तेषां स्पष्टवा तत् तद् विषं हरेत् ॥५९॥ इस मंत्र को युक्त करके पैर,जांघ, इंद्रिय, नाभि, हृदय का मुँह और मस्तक को छूने से उस उस स्थान का विष नष्ट हो जाता है।
अजितेन यतं कटः पूज्यस्तारोऽग्नि वल्लभा, ताा पंचाक्षराणयेष नेत्रा तांगो मनुःस्मतः
॥६०॥ क्षिपऊ स्वाहा ज्वल-ज्यल महा मति ठः ठः हृत गरूड़ चूड़ानन ठाठः शिरवा॥
SOCICI5DISTRI501501505[६३९ PISO5CTRICISI5015015