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(अजित (इ) से युक्त कूट (क्ष) पूज्य (प) तार (ॐ) अनि (स्वा) वल्लभा (हा) अर्थात् क्षिपॐ स्वाहा यह पांच गरूड के अक्षर है । और इनके अंग नेत्र आदि है। यह मनुः द्वारा कहा गया है। क्षिपॐ स्वाहा ज्वल-ज्वल महा मति ठः ठः हृत गरूड़ जनन ठः ठः हत गरूड चूडानन ठः ठः ॥
इस मंत्र को पढ़कर शिखा को छूवे ।
गरूड प्रभंजन-प्रभंजन वित्राशय-वित्राशय विमूर्द्धयर ठः ठः कवचं ॥ यह कहकर कवच की क्रिया करे ।
ॐ अप्रतिहत वला प्रतिहत शावर हुं फट ठः ठः । अस्त्रं
यह पढ़कर अस्त्र दिखाने की क्रिया करे ।
उग्र रूप धारक सर्प भयंकर भीषटा भीषटा सर्पान दह दह भस्मी कुरू भस्मी कुरूकुरूं ठः ठः नेत्रं ॥
इस मंत्र को पढ़कर नेत्र को छूवे ।
पुरश्वरेण मेतस्य मनोर्लक्ष जपोमतः स्थावरं, जंगमं चैव कृत्रिमं च विषं हरेत
॥ ६१ ॥
यह पुश्चरणमंत्र है। इसको मन लगाकर एक लाख जप करने से स्थावर, जंगम और बनावटी सबप्रकार के विष नष्ट हो जाते हैं।
नेत्रय मंत्रस्य धूपाद्यं वितार स्यास्य संजपात् आविष्टश्च भवेदृष्टं स्य वृतं च निवेदयेत्
॥ ६२ ॥
नेत्र मंत्र को पढ़कर धूप देने से और इस वितार मंत्र का जप करने से नाग आवेशित होकर अपना सब हाल कह देता है।
ॐ पक्षिराज राजपक्षि ॐ ठः ठः ठीं ठीं यरलव ॐ पक्षि ठःठः ॥
एतेन सहस्त्र त्रय जापात् सिर्द्धन गरूड मंत्रेण,
यष्टिता भुवि प्रहरणं सर्वे विषापहरणं भवति
॥ ६३ ॥
इस गरूड मंत्र को तीन हजार जप से सिद्ध करके पृथ्वी में यष्टि (लाठी) मारने से सब विष नष्ट हो जाता है।
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