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05215015055015 विधानुशासन 150150150151050SI
पश्चिम दलाट भेदित भेदित पीताक्षराणि चत्वारि न्यस्य, क्रमात् स्वकीये हस्ते ह्रदये च तं प्याटोत्
॥४६॥ पश्चिम की तरफ के दल में सम्पूर्ण और आधे चार पीले अक्षरों को रखकर उसका ध्यानक्रम से अपने हाथों और हृदय में करे।
अंगुष्टाद्यं गुलि मध्यम पर्व सु मंडलानि विन्यसेत्,
ता या क्षरान सवर्ण द्वि जिव्ह बीजै रूपेतानि ॥४७॥ अंगूठे, तर्जनी, मध्यमा, अनामिका और कनिष्टा आदि अंगुलियों के शखो मे पाचो मंडल गरुड के अक्षरों के सुवर्ण द्वि जिव्ह बीजों सहित रखें।
भूतात्मीया हिनां नामाद्यानक्षरान् गुणांश्च, मंडलपंचक मध्ये कुन्मिंत्र च विन्यसेत्
॥४८॥ उन पांचों मंडलों में भूत आत्मीक अथवा सर्प के नाम के अक्षरों सहित मंत्र को रखे।
अंगुष्टाद्य मुंलि पर्व सु विपरीते भेदितो न्यसेत्, स्वरपूर्वकम क्षरं पंचक मपि मंत्रि क्रमेणैव
॥४९॥ मंत्री अंगूठे आदि पांचों उंगलियों के पोखों में उलटे आधे स्वर सहित पांचों अक्षरों को रखे।
इत्थं प्यातो विनता नंदन हस्ता विधान एष करः,
वामः कुर्यात् स्पर्शात्स्थावर जंगम विषाक्षेपान इसप्रकार (विनत नंदन) गरूड हस्त विधान से ध्यान पूर्वक उसे बायें हाथ से छूने से सब प्रकार के स्थावर जंगम विष नष्ट हो जाते हैं।
आजान्विता धुक्त स्थान विभागस्थ निजवपूर्वण,
गरूड स्वं मनु प्यायन् दष्टं तेन स्पृशेन मंत्री ॥५१ ।। घुटनों से लगाकर पूर्वोक्त स्थानों में अपने शरीर के वर्ण का ध्यान करता हुआ औरअपने को गरूड जानता हुआ मंत्री उससे काटे हुए पुरुष को छुवे |
अथवात्र ताक्ष्य हस्ते क्षिप्तं प्रभृतीनां निवेशयत्, स्थाने वर्णाश्चतुरो वर्णानां लवरयान मंत्री
॥५२॥ अयवा इस गरूड के हाथ में शीघ्र तब ल य र य इन चार वर्णो को मंत्री स्थापित करे।
इति गरूड हस्त विधानं समाप्त ಆಗುಣಪಡಣಪಥSI &39 Yಣಣಬಣಣಬಣಣ63