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CSCISCI501501505 विद्यानुशासन 95ODRISTRISTD351565 फिर उस तीन लोक में व्याप्त गरूड़ के नेत्रों का लाल रंग और उसकी नासिका को नीले रंग का ध्यान करे।
उद्धाधो रेफाभ्या मों कारेणापि संयुतं कूट, व्योमं चरणमोपेतं भेदित मितरऽत्र कर्णिका कथिता
॥४४॥
स्युः कैशराः स्वरा काद्याः वर्गाः सप्त चापि यश वर्गों,
अपि पत्राणराऽष्टौ विष रोग रिपो मातकाः बजश ॥४५॥ औंकार को उपर और नीचे रेफ सहित कूटादार (क्ष) और व्योम अर्थात् अनुस्वार या आकाश (हा) चर को नमः युक्त करके अर्थात् ॐई हा चर नमः मंत्र को कर्णिका में लिखे केशर रूप से कहा है। क आदि कवर्ग, चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग, पवर्ग,यवर्ग, शवर्ग और सोलह मातृका (स्वरों) सहित आठ पत्तों के कमल में लिखे। यह आठों तरह के विष,रिपु, रोग का शुत्र मातृका नाम का कमल होता है।
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