________________
CSDISEASIRISTRI5125 विधानुशासन PSIRIDIO205050ISIOTES
प्रष्टुर्वाक्य स्यादौ वरुणःशस्तः शतकृतुमध्यः, वाटवानी दुष्टातती दृष्टानि नपुंसकानि स्युः
॥ ३५॥
चंद्रामार्ग यतो वायुः इतं स्तन्मुख मागतः, तदा जानीहि दष्टस्य जीवितं मतिरन्यथा
॥३६॥ पूछने वाले के वाक्य के आदि में जल अक्षर मध्य में इन्द्र अदार अच्छे होते हैं।वायु अक्षर औरअग्नि अक्षर तथा नपुंसक अक्षर अत्यंत ही दोष युक्त होते हैं। यदि वायु चन्द्र मार्ग में चलते रहते दूत आया हो तो काटे हुए को बच जाने वाला जाने यदि इसके विपरीत हो तो उसको मरा हुआ जाने।
अग्र गते यदि दूते नाडी वामात्मनो वहति त्राणं,
प्रष्ट गते दक्षिणिका दष्टो जीवि दितिज्ञेयः ॥३७॥ यदि दूत के आगे आने पर अपना बायाँ स्वर अर्थात् चन्द्र स्वर चलता हो तो उसकी रक्षा हो जायेगी या दूत के पीछे से आने पर भी बाई नाडी(स्वर) चलता हो तो भी उसको व्यच जाने वाला जाने ।
पूर्णाध्वस्ते दूते फणि दष्टो निश्चयेन संग्राहः,
रिक्त पथि प्रति वर्तिनि मुच्यते नात्र संदेह : ॥३८॥ दूत के आने के समय पूर्णा के खतम होने पर साँप से इसे हुए की अवश्य चिकित्सा करनी चाहिये
और यदि दूत रिक्त अर्थात् ख्याली नाड़ी में हो तो पुरूष अवश्य ही बच जाता है। इसमें कोई भी संदेह नहीं है।
पूरिते वक्ति च दूतो यचो ते वा सुसंवृत्तिः स्यात्,
संग्रहोन्यथान्ये तेवं सर्व कार्य सु योजयेत् । ॥३९॥ यदि दूत पूरित में अच्छी तरह ढ़के हुए शब्द कहे तो सर्प से इसा हुआ पुरुष बच जाएगा अन्यथा नहीं बचेगा ऐसा सब कामों में भी लगा लेये।
कथयति दूते यातां श्वासोतं मंत्रिणश्च संविशति,
जीविति तदा अहि दष्टो मरणं स्यादन्यथा भावे ॥४०॥ मंत्री के श्यास के अतं में यदि दूत बात कहे तो काटा हुआ पुरूष जी जाता है अन्यथा मर जाता
अग्नि यमनैशति वति पच्छति दूते भुजंग दष्टस्ट,
अंत क नि वास वा सः प्रेत्यासन्नो भवेत् तस्यः CTERISTOISTRISRISE505[६११DISTERSIOSDISCISIOISS
॥४१॥