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CTSOISSISTRISIOSIS विधानुशासन P150151DISTRISTRISIOSI
बालेन दंशे दंशाना मध्य में कागुल मतं, मध्येन द्वयं गुलं प्रोक्तं वृद्देन त्र्यंगुल मतं
।।८१॥ बालक नाग के काटे हुए का एक उंगल गहरा जखम होता है, युवा नाग के काटे हुए का दो उंगल और वृद्ध नाग के काटे हुए का जख्म तीन उंगल का होता है।
दंशो ग्रथितः रूजो दाहोतः पिपीलीक स्पत्किंडूतो,
दंशमेतः सविषः स्यानिर्विष तत्त्व परः ॥८२ ॥ सर्प इसने से जिस रोगीके दाह में चींटी के काटने जैसा दर्द का अनुभव होता हो, वह स्थान पीला पड़ जाये और खाज आने लगे, उस काटे हुए को विष सहित और शेष को बिना विष का समझना चाहिये।
दंशस्य तस्य भेदाच त्वारो मंतीभि समदिष्टाः, दष्टं विद्वं खडितम वलुप्तं चेति तत्संज्ञाः
||८३॥ मंत्रियों ने सर्प काटने के चार भेद कहे हैं-दष्ट (डसा हुआ) विद्वं(बींधा हुआ) खंडित(टुकड़े किये हुए) और अवलुतं (घाटाहुआ)
ऐकेन दंता दंशो दष्टं द्वाभ्यां कतो भवेद्विद्धं बहुभिः,
खंडितमत्यं दशनं विनौषतालु सं स्पर्श ॥८४ ॥ एक दांत के डसने को दष्ट कहते हैं-ऊपर नीचे के दो दांतो से काटे हुए आर से पार करने को बिद्ध, बहुत से दांतो से काटे हुए टुकड़े कर देने को खंडित, और बिना दांत के होंठ तालू से छूने को अवलुप्त कहते हैं।
तदंश हेतवोष्टी भीति वभुक्षा पुत्रातंतोन्मादा, आक्रमणं दप स्वस्थान प्राणं तथा बैरं
॥ ८५॥ सर्प के काटने को आठ कारण है- भय, भूख, पुत्र का दुःख, उन्माद, आक्रमण, अभिमान अपने स्थान की रक्षा करना और शत्रुता।
भीत्या क्षत मदु वस्त्रं बिद्धं विष वर्जितं स्मृतं.
तेषुधि हतो लाला खंडितमतिकच्छ साप्यं स्यात् ॥८६॥ नाग के भय से डसने पर केवल वस्त्र बिं जाता है और विष नहीं चढ़ता है, भूखे के इसने पर मांस खंडित हो जाता है और मुँह से लार बहने लगती है. इसकी चिकित्सा बडे कष्ट से होती है। eeeeeeelter වලටeකක්