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PSPSPSPSPSS विधानुशासन 152
रूप व्यक्तिं न चानाति ध्वांतवा यस्तु पश्यति, नाभि ग्रंथो विनष्टोग्निर्यस्य स म्रियते नरः
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॥ १११ ॥
जो किसी व्यक्तिको नहीं पहचाने, कुछ न सुने, जो अंधकार को नहीं देखे, जिसकी नाभि की गांठ अग्नि से नष्ट हो जावे वह पुरुष मर जाता है ।
शस्त्र क्षतेषु गात्रेषु क्षतजैर्नैव दृश्यते, यदायुष्मान गछेत् सोति कांति कमातुरः
॥ ११२ ॥
यदि शरीर में शस्त्र लगने पर जखमी पुरुष को क्षितिज दिखलायी नहीं देवे तो वह प्राणी मृत्युपाने के लिये बहुत आतुर हो जाता है।
भाल नासाग्र विन्यस्त प्रकोष्टे : प्रतिभासते, निज स्कन्दीया न्यस्य स्यान्न तस्याशु परिक्षय:
॥ ११३ ॥
जो अपने भाल और नाक पर रखी हुयी अपने स्कन्द (शरीर) की और दूसरे की कलाई तथा उंगली को पहचान ले वह शीघ्र नहीं मरता ।
ह्रदये
किनारा कुनै कल कलस्ट
ध्वने यदि जो वास्ति श्रुति स्तस्य मृतिं विदुः
॥ ११४ ॥
यदि भील के हृदय में और कोख मे कलकल (शोर) का शब्द नहीं पहुँचे तो शास्त्रों ने उसकी मृत्यु कही है।
नाभि जाल श्रव पृष्टः कंक्षे यस्य प्रमार्जितः, भूत्वा दंष्टा प्रजायेत तेन द्राक लभते मृतिः
॥ ११५ ॥
जिसकी नाभि की नाल, कान पीठ और बाहु मूल में शुद्ध अवस्थामें दांत लगे हो वह द्राक (तत्काल) मृत्यु को पाता है ।
रोमोमो रस स्तावत सेके कृते सु शीतलैः सलिलैः, यस्या हतेषु गात्रेषु हंति पद वीक्षणो भवः
॥ ११६ ॥
जिसके ठण्डे पानी में तर करने से बाल खड़े हो जावे, जिसके शरीर में लाठी मारने के निशान
हो जाये ।
प्रभृतस्य करतल स्या कुंचन माकुं चितस्य वातस्य, विहिते प्रसारण सति यथा पुरं च व्यव स्थानं
॥ ११७ ॥
जो मुट्ठी को खोलने और बंद करने को अथवा हथेली को फैलाने को पहले के समान जान लेवे ।
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